युगों बाद युग बदल रहा है...


कल अयोध्या में भगवान के मंदिर की पहली ईंट रखी गयी है।नब्बे का वह दौर याद आता है। लाखों लोग, दोगुनी आंखे, राम नाम की धूम, लाखों कलेजों की उम्मीदें, बन्दूक की गोलियां, रक्त, हाहाकार, मृत्यु, शान्ति... प्रलय के बाद की शान्ति केवल सनातन भाव जो जन्म देती है। पीड़ा की कोख से ही देवत्व जन्म लेता है।


अयोध्या का मन्दिर इस बात के लिए भी विश्व में अनूठा होगा कि उसके लिए प्रजा ने पाँच शताब्दियों तक लड़ाई लड़ी है। इसके लिए असँख्य बार, असँख्य बीरों ने धर्म के हवनकुण्ड में अपने जीवन की आहुति दी है... बार बार पराजित हुए, गिरे, पर फिर उठ कर खड़े हुए और लड़े... और अंततः जीते...


अयोध्या ने सिद्ध किया है कि धर्म की लड़ाइयां पाँच सौ वर्षों के बाद भी जीती जा सकती हैं, बस अपने मार्ग पर चलते रहना है। आज के समय में किसी क्षणिक पराजय के बाद ही लोग हतोत्साहित हो कर विलाप करने लगते हैं कि 'सब समाप्त हो गया, हमें कोई बचा नहीं सकता...' अब ऐसे समय में अयोध्या का मन्दिर ऊर्जा देने का काम करेगा कि हम पराजित नहीं हो सकते... अंत में धर्म ही जीतेगा। जो खतरे में आ जाय वह धर्म नहीं हो सकता। धर्म न संकट में पड़ता है, न समाप्त होता है।


नियति का खेल बड़ा मनोरंजक होता है। ध्यान से देखिये समय ने कितना अद्भुत संयोजन किया है। महाराज हेमचंद्र विक्रमादित्य (1556 ई) के बाद सन 2014 में पहली बार भारत की केंद्रीय सत्ता पर कोई ऐसा व्यक्ति पहुँचता है, जिसे स्वयं को हिन्दू कहने में लज्जा नहीं आती। वह निकलता है तो भगवान शिव की नगरी बनारस से...वह तिलक लगाता है, भगवा पहनता है...  उसके दो वर्षों बाद ही समय उत्तर प्रदेश के सिंहासन पर एक साधु को बैठाता है। मुझे लगता है भारत में किसी साधु के राजा होने की यह पहली ही घटना होगी...  साधु भी वे, जिनकी गद्दी ने राममन्दिर के लिए लड़ी गयी लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्षों से जातियों के नाम पर टूटी जनता धर्म के नाम पर एक साथ खड़ी होती है, और तब आता है सन 2020... अचानक सब कुछ आसान लगने लगता है। दोनों पक्ष ही कहने लगते हैं कि मंदिर बनना चाहिए... और...


कब क्या होना है और किसके हाथों होना है, यह समय तक कर के बैठा है। समय ने तय किया था कि मन्दिर की ईंट किसी नेता, किसी राजा के हाथों नहीं बल्कि एक सन्त के हाथों रखी जायेगी। वही हुआ... है न अद्भुत?


वर्तमान भारत को याद है कि दो हजार वर्ष पूर्व महाराज विक्रमादित्य ने अयोध्या का पुनरुद्धार किया था, और भव्य मंदिर बनवाया था। भारत को यह भी याद है उस प्राचीन मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण कनौज नरेश महाराज विजयचन्द्र ने कराया था। भविष्य का भारत भी पूरी श्रद्धा के साथ स्मरण रखेगा कि आधुनिक युग में मन्दिर का निर्माण गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी महाराज के काल में हुआ था। समय ने योगी बाबा को सहस्त्राब्दियों तक के लिए स्थापित कर दिया है/अमर कर दिया है।


वे असँख्य लोग जिन्होंने आज का दिन दिखाने के लिए अपनी आहुति दी थी, उनको सादर नमन। हमें तो उन सब के नाम भी याद नहीं। नाम याद है केवल दो कोठारी भाइयों का... वे दोनों बलिदानी उन असँख्य बलिदानियों के प्रतिनिधि के रूप में याद किये जायेंगे, पूजे जाएंगे।


मुझे लगता है उन असँख्य वीरों की याद में वहीं कहीं एक छोटा सा मन्दिर भी बनना चाहिए, ताकि भविष्य उन नव-दधिचियों को प्रणाम कर सके...


(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)


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