देश का दुर्भाग्य है कि आम जनता भी अपराधी की जाति, धर्म, पार्टी, विचारधारा देख कर समर्थन या विरोध करती है


पाँच छह वर्ष पुरानी बात है, एक NGO में काम करने वाली एक लड़की ने फेसबुक पर लिखा कि उसके बॉस ने एक वर्ष पूर्व उसके साथ रेप किया था।


फेसबुक पर बात पसरी, और एकाएक बवाल हो गया। हर वाल पर एक ही पोस्ट... सारे लोग लड़की के समर्थन में आ गए। क्या दक्षिणपंथी, क्या वामपन्थी, सब एक सुर में बोलने लगे। क्रांतिकारी कवि/कवयित्रियां पुरुष सत्ता के विरुद्ध पोस्ट लिखने लगीं। लड़की को सपोर्ट करने वाले लोग मिले तो उसका साहस बढ़ा और उसने थाने जा कर FIR दर्ज करा दिया। आरोप यह था कि एक वर्ष पूर्व उसके बॉस 'जो क्रांतिकारी एक्टिविस्ट थे' ने उसके साथ यह क्रांति की थी।


क्रांतिकारी साहब कम्युनिस्ट तो थे, पर इज्जतदार व्यक्ति थे। वे जानते थे कि आरोप सच है, सो बच नहीं पाएंगे। जान बच भी गयी तो प्रतिष्ठा नहीं बचेगी। सो बेचारे तीसरी मंजिल पर से कूद कर आत्महत्या कर लिए...


साहब जब मर गए तब जनसामान्य को पता चला कि वे कम्युनिस्ट थे। अब उन दिनों फेसबुक पर दक्षिणपंथ हाशिये पर हुआ करता था, फेसबुक पर वामपंथ की तूती बोलती थी।


एकाएक माहौल बदल गया। जो लोग लड़की के साथ थे, वे भी विरोधी हो गए। पूरा कम्युनिस्ट खेमा लड़की के विरुद्ध उतर गया। वे नारीवादी लेखिकाएं जो हमेशा पुरुषों के विरुद्ध तलवार से कविताएं लिखती थीं, एकाएक मृतात्मा के साथ खड़ी हो गईं और लड़की को गालियां देने लगीं। अजीब अजीब तर्क दिए जाने लगे कि क्या हो गया जो... लड़कों से गलतियां हो जाती हैं... लड़की को फेसबुक छोड़ कर भागना पड़ा। फिर भी छह महीने तक उसे गालियां मिलती रहीं।


कल कानपुर में एक दुखद घटना हुई। अपराधी जाति से ब्राह्मण हैं, सो लगी ब्राह्मणों को गालियां पड़ने... मनुवाद, ब्राह्मणवाद, हेनवाद, तेनवाद, फलानावाद...


आज दोपहर होते होते पता चला कि दूबेजी तो पुराने समाजवादी हैं। फिर एकाएक विरोध का स्वर चुप्पी में बदल गया। नारे सुस्त पड़ गए, विरोध का पतन हो गया।


इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि आम जनता भी अपराधी की जाति, धर्म, पार्टी, विचारधारा देख कर समर्थन या विरोध करती है। अपराधी अपनी जाति का हो, अपनी पार्टी का हो तो चुप्पी साध ली जाती है, और दूसरी जाति या विरोधी पार्टी का हो तो खूब हल्ला होता है। यह किसी एक पक्ष की बात नहीं है, हमाम में हम सब नंगे हैं। और सच मानिए, हमारी दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण यही है।


अपराधी कोई भी हो, किसी भी जाति या धर्म का हो, उसे दण्ड मिलना ही चाहिए। कानपुर में जो हुआ है वह भयावह है। ऐसी घटनाएं प्रशासन के ऊपर से आम जनता का भरोसा तोड़ देती हैं।


योगी आदित्यनाथ जी की पुलिस पिछले कुछ दिनों से जिस तरह अपराधियों से निपटी है, उसे देख कर यह भरोसा किया जा सकता है कि जल्द ही अपराधी पकड़े जाएंगे। और यदि ऐसा नहीं होता है तो जनता कहीं नहीं गयी, 2022 में न्याय कर देगी। यूपी की जनता यूँ भी सत्ताधारियों का घमण्ड तोड़ने के लिए जानी जाती है।


(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)


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