जो मनुष्य झूठे आरोप-प्रत्यारोप में फंस जाए, वह इस मंत्र को जपकर हो सकता है आरोप मुक्त


गणेशजी ने दिया था चंद्रमा को श्राप.....भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजवदन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराता रहा। उसे अपने सौंदर्य पर अभिमान हो रहा था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनका उपहास कर रहा है। क्रोध में आकर श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि- आज से तुम काले हो जाओ। अब चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने श्रीगणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण होओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे। लेकिन आज का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति आज यानी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसीलिए भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता।


भगवान श्रीकृष्ण पर भी लगा था चोरी का झूठा आरोप


सत्राजित् नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को तप से प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी। उसके प्रभाव से पूरे राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि यानी बरसात न होना, सर्प, अग्नि, चोर आदि का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् राजा उग्रसेन के दरबार में आया। वहां श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि अगर राजा उग्रसेन के पास होती। किसी तरह यह बात सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने मणि अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। 


एक दिन प्रसेनजित शिकार खेलने जंगल गया। वहां सिंह ने उसे मार डाला। जब वह वापस नहीं लौटा तो लोगों ने यह आशंका उठाई कि श्रीकृष्ण उस मणि को चाहते थे। इसलिए सत्राजित् को मारकर उन्होंने ही वह मणि ले ली होगी। लेकिन मणि सिंह के मुंह में रह गई। जामवन्त ने शेर को मारकर मणि ले ली। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच्चाई की तलाश में जंगल गए। वहां श्रीकृष्ण का जामवन्त से युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने श्रीराम के रूप में दर्शन देकर जामवन्त जी के शक का निवारण किया तब जामवन्त जी ने मणि श्रीकृष्ण को दी और श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर लगे आरोप का परिहार मणि लौटा कर किया।


ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण के इस प्रसंग को सुनने-सुनाने से भाद्रपद मास की चतुर्थी को भूल से चंद्र-दर्शन होने का दोष नहीं लगता।


चंद्र दर्शन होने पर करना चाहिए इस मन्त्र का जाप-


सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष: स्यमन्तक:।।
इस मंत्र के प्रभाव से कलंक नहीं लगता है।


जो मनुष्य झूठे आरोप-प्रत्यारोप में फंस जाए, वह इस मंत्र को जपकर आरोप मुक्त हो सकता है।


वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ !
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !!


                          ।। श्री गणेश ।।


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