क्या मतलब है ऐसी व्यवस्था का?


लोकतांत्रिक भारत के तमाम सुन्दर रंगों में एक अद्भुत रङ्ग यहां की शानदार शिक्षा व्यवस्था का भी है। यह विश्व की वह अद्भुत व्यवस्था है जहाँ निन्यानवे प्रतिशत विद्यार्थी जीवन भर नहीं समझ पाते कि उन्होंने जो पढ़ा है उसका लाभ क्या है। अधिकांश विद्यार्थियों को तो यह भी पता नहीं होता कि वे पढ़ क्यों रहे हैं। वे दो घण्टे मेहनत कर के त्रिकोणमिति के सूत्र केवल इसलिए रटते हैं कि " याद नहीं किया तो मिसीर जी माटसाब मार मार के भुर्ता बना देंगे।" हालांकि स्वयं मिसीर जी माटसाब भी कभी समझ नहीं पाते कि हर बच्चे को इस मुई त्रिकोणमिति की जरूरत क्या है...


सरकार और देश की बुद्धिजीविता कहती है कि हर बच्चे को स्कूल-कॉलेज में पढ़ना ही चाहिए, पर कोई यह नहीं बता पाता कि पढ़ने वाले को इससे मिलेगा क्या? केवल बेरोजगारी ही न? भारत की एक अद्भुत सच्चाई है कि यहाँ बेरोजगार केवल पढ़े लिखे लोग ही होते हैं, कोई अनपढ़ व्यक्ति कहीं बेरोजगार नहीं मिलेगा। फिर बच्चों को जबरदस्ती स्कूलों में ठेल कर बेरोजगारों की फौज खड़ी करने से लाभ क्या है?


जिस बच्चे को बड़े हो कर टीवी रिपेयर करना है, उसे पुरापाषाण काल का इतिहास क्यों पढ़ाना? जिसे टाटा के स्टील प्लांट में वेल्डर का काम करना है उसे जबरदस्ती हिन्द महासागर की समुद्री धाराओं के बारे में क्यों पढ़ाया जाता है? इन प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं।


जानते हैं, भारत की आर्थिक दुर्दशा में सबसे बड़ा योगदान उसकी लक्ष्यविहीन शिक्षा व्यवस्था का है। इस व्यवस्था में पढ़ाई पूरी होने तक बच्चे समझ नहीं पाते कि उन्हें करना क्या है। रोजगार के बारे में निर्णय तो पढ़ाई पूरी होने के बाद परिस्थितियों के आधार पर लिया जाता है। कलक्टर बनने की तैयारी करने वाला लेखक हो जाता है, इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला स्कूल खोलता है, बैंकर बनने की पढ़ाई करने वाला मास्टर हो जाता है और बीएड वाले को अंत मे पान की गुमटी खोलनी पड़ती है। क्या मतलब है ऐसी व्यवस्था का?


कितना अजीब है कि पढ़ाई के नाम पर तीन साल के बच्चे से उसका बचपन छीन लिया जाता है। वह छह घण्टे स्कूल में रहता है, दो घण्टे ट्यूशन में, दो घण्टे डांस क्लास में और दो घण्टे रास्ते में... और यह सब केवल इसलिए ताकि मां-बाप तीन वर्ष के बच्चे से पड़ोसियों के सामने "टिंकल टिंकल लिटी लस्टार" गवा कर मुस्कुरा सकें... क्या यह सब बाल मजदूरी जैसी नहीं लगती?


एक दस वर्ष का बच्चा यदि अपने पिता के साथ खेत मे काम करे तो वह बाल मजदूरी है। किसी बच्चे का भैंस चराना दंडनीय अपराध है। पर टीवी वाले एक सात साल की लड़की को क्रूरता के साथ कठिन स्टंट कराते हुए नंगा नचायें, तो वह अपराध नहीं है। वह मजदूरी भी नहीं है। क्या है इन मूर्खतापूर्ण नीतियों का अर्थ? क्या लाभ है ऐसी शिक्षा व्यवस्था का?


शिक्षा नीति को लेकर भारत दूसरों से नहीं तो कम से कम चीन से तो सीख ही सकता था। चीन की शिक्षा प्रणाली पूर्णतः रोजगार आधारित है, और यही उसकी सफलता का सबसे बड़ा राज भी है।


तो रुकिये! सत्तर वर्षों में पहली बार सरकार इस दिशा में एक कदम बढ़ी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 रोजगार परक शिक्षा की ओर बढ़ता हुआ पहला कदम है। हम यह नहीं कह रहे कि नई शिक्षा नीति रोजगार की पूरी गारंटी दे देगी, पर इतना अवश्य है कि बच्चों पर से अनावश्यक बोझ कम हो रहा है।


मेरे हिसाब से नई शिक्षा नीति में  दो बातें महत्वपूर्ण हैं। पहला यह कि नौंवी कक्षा से ही बच्चे साइंस, आर्ट्स, कॉमर्स के बन्धन से मुक्त हो कर स्वेच्छा से विषय चुन सकते हैं। वे चाहें तो केवल वही विषय पढ़ सकते हैं जो वे पढ़ना चाहते हैं। और दूसरा यह कि पहले की तरह अब सङ्गीत, नृत्य, खेल आदि अतिरिक्त विषय नहीं होंगे बल्कि मुख्य धारा में होंगे।


तो यह उम्मीद की जा सकती है शायद भविष्य में कुछ और सुधारों के बाद स्थितियां सचमुच बदल जाएं। बाकी देखते हैं....


(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)


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