राम मंदिर आंदोलन : भाजपा ने खोया कम पाया अधिक


पांच अगस्त 2020 का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज कराने के लिए भाजपा कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती। और छोड़ना भी नहीं चाहिए। दो सांसदों वाली भाजपा में राम मंदिर आंदोलन ने ही जान फूंक दिया। इसी का नतीजा है कि आज 303 सांसदों वाली भाजपा देश में दूसरी बार पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अखंड राज कर रही है। आइये इतिहास के आइने में भाजपा के लिए संजीवनी बने राम मंदिर आंदोलन के उस अतीत में झांकते हैं जिसमें भाजपा ने सिर्फ पाया ही पाया, खोया नहीं।


1980 में जन्मीं भाजपा में आने वाले अधिसंख्य नेता जनसंघ के ही थे। 1984 के आम चुनावों में भाजपा को केवल दो लोकसभा सीटें मिली थीं। चुनाव से कुछ महीने पहले, विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक मुहिम छेड़ी, पर चुनाव पर इसका कोई असर नहीं हुआ। हिन्दुत्व को जगाने वाले इस मुहिम को इंदिरा गांधी की हत्या से राजीव गांधी और कांग्रेस को मिली सहानुभूति ने कुंद कर दिया।


हालांकि यह बात दीगर है कि चुनाव में 400 से अधिक सीटें जीतने वाली राजीव गांधी की सरकार पर कुछ महीने बाद ही मुसीबत मंडराने लगी। एक मुस्लिम महिला शाहबानो को अदालत ने गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया, इस पर अमल रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार ने एक नया क़ानून बना दिया जिसकी वजह से उन पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगे और सरकार दबाव में आ गई। इसकी काट के लिए कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की शिकायत करने वाले हिंदुओं को ख़ुश करने का एक तरीका ढूंढ निकाला। इसके बाद फ़रवरी 1986 को फ़ैज़ाबाद के न्यायाधीश केएम पांडे ने हिन्दुओं को पूजा करने के लिए विवादित धर्म स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया। यहां 1949 से रामलला की मूर्ति तो रखी थी पर हिन्दुओं को अंदर पूजा करने पर प्रतिबंध था।


लेकिन कथित मुस्लिम तुष्टिकरण से उस समय संघर्ष करती भारतीय जनता पार्टी और इसके सहयोगी हिंदुत्व परिवार के दलों को फायदा मिला। "हिंदुओं में तुष्टिकरण के फ़ैसलों से सरकार से अधिक मुसलमानों से नफ़रत की भावना पैदा हुई थी। तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के बारे में हिन्दुओं ने पहली बार आम नागरिक की तरह नहीं, बल्कि हिंदू के तौर पर सोचना शुरू कर दिया। 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस की हिन्दुओं को मनाने की कोशिश रही। राम मंदिर आंदोलन को नकारने के लिए कांग्रेस सरकार ने हिन्दू समाज को रामराज्य का सपना दिखाया। ख़ुद राजीव गाँधी फ़ैज़ाबाद गए और अपनी चुनावी मुहिम का आग़ाज़ रामराज्य लाने के वादे से किया।


लेकिन कांग्रेस पार्टी का हिंदुत्व के प्रति झुकाव अस्थायी साबित हुआ। . राजीव गांधी ने हिंदुत्व का मुद्दा तो पकड़ा पर आगे जाकर इसे छोड़ दिया जिसका फायदा भाजपा को मिला।


तब 1989 में पार्टी ने अपने पालमपुर संकल्प में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का वादा किया। उसी साल दिसंबर के आम चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के निर्माण की बात अपने चुनावी घोषणापत्र में पहली बार शामिल कर लिया। नतीजन 1984 में दो सीट वाली भाजपा 1989 के आम चुनाव में 85 सीटें जीत गई।


मंदिर मुद्दे पर पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता और इसके अध्यक्ष आडवाणी के ऊंचे होते क़द से जनता दल की सरकार घबरा गई। तत्कालीन  प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भाजपा के बढ़ते असर को कम करने के लिए 1990 में मंडल कमीशन के आरक्षण को लागू करने की घोषणा कर दी। मंदिर बनाम मंडल की जंग में एक बार फिर जीत भाजपा की हुई। आडवाणी ने 1990 में रथयात्रा निकाली ताकि कारसेवक 20 अक्टूबर को राम मंदिर के निर्माण में हिस्सा ले सकें। "आडवाणी की रथयात्रा ने भाजपा के हिन्दुत्व को ऐसा धार दिया कि 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा ने 120 सीटों का उत्साही स्कोर खड़ा कर दिया जो पिछले चुनाव के मुकाबिल 35 सीटें अधिक रहीं। उसी साल यूपी में पार्टी पहली बार कल्याण सिंह के नेतृत्व में सत्तासीन हुई।


लेकिन 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद के तोड़े जाने के बाद कल्याण सिंह की सरकार तो गिरी ही भाजपा को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी।


इस बीच केंद्र में सरकार बनी जिससे पार्टी का मनोबल ऊंचा हुआ और अब उसे मंदिर मुद्दे को फिर धार देने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। यही कारण रहा कि 2004 के चुनाव में भाजपा ने 'इंडिया शाइनिंग' का नारा दिया और विकास की बात की। पार्टी चुनाव हार गई। हिन्दुत्व के एजेंडे से मुंह मोड़ने की गलती का एहसास होने पर 2009 में पार्टी ने राम मंदिर का मुद्दा फिर सामने रखा लेकिन पूरी ताक़त से नहीं।


इसके बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने राम मंदिर की जगह विकास को पहल दी और आज भाजपा भारत की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। इसीलिए तमाम विश्लेष्कों की नजर में राम मंदिर मुद्दे ने भारत की राजनीति को न कि हमेशा के लिए बदल दिया बल्कि करोड़ करोड़ हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा यह मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के उदय का कारण बना और कांग्रेस के पतन की वजह भी।


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