बुद्धि में हमेशा दो सिपाही चाहिए


वैष्णव भी केवल चार आना आश्रय ठाकुरजी का रखते हैं। जीव तो व्यक्ति का, प्रतिष्ठा का, पैसे का आश्रय ही सर्वोपरि मानता है।


अपनी बुद्धि तो परावलम्बी बनी रहती है। वस्तु का आश्रय लेते हैं और ठाकुरजी को भूल जाते हैं। जिनके पास सत्ता है वे सत्ता का आश्रय लेते हैं। 


कदम कदम पर हम अपने भगवदाश्रय को तोड़ते हैं। इसलिए बुद्धि में हमेशा दो सिपाही चाहिए। विवेक भी चाहिए और धैर्यता भी चाहिए।


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