जगत में तीन प्रकार के जीव होते हैं


जगत में तीन प्रकार के जीव होते हैं। प्रथम प्रवाही जीव, दूसरे साधना मार्गीय जीव और तीसरे कृपामार्गी जीव। 


श्रीहरि ने इच्छा प्रधान वाली प्रवाही सृष्टि को मन से उतपन्न किया। यह भगवान की आसुरी सृष्टि है। ऐसे जीव तो यहाँ आकर मात्र अपनी ऐषणाओं की पूर्ति ही करते हैं। ये भौतिकवादी होते हैं।


संसार सागर में थपेड़े खाने के लिए मात्र पुनरपिजननं पुनरपि मरणं के विधान से बंधे रहना इनकी नियति होती है। यदि कोई इन्हें सन्मति देना भी चाहे तो भी उसे वे ग्रहण नहीं करते।


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