जल चरणामृत कब बनता है


जप की मात्रा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण जप करने की वृत्ति है। भक्तिहीन किसी का भी जीवन नहीं है। हम आप सभी कहीं न कहीं भावना से किसी पर आश्रित हैं।


भावना के आश्रय का नाम ही भक्ति है। लेकिन वह भक्ति कहलाती कब है। जल चरणामृत कब बनता है जब भगवान चरणारविन्द का संस्पर्श होता है। तब वह जल चरणामृत बनता है।


तब वह जल पूज्य होता है शिरोधार्य होता है ऐसे ही भावना जब भगवान का स्पर्श करती है संसार का स्पर्श करती है तो आसक्ति है उसका परिणाम कुछ और आता है देखने में बिल्कुल वैसी ही है।


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