जिनको धीरज -विश्वास है,उन्हें हमसे कहने की जरुरत नहीं परती


महाराज जी भक्तों को समझा रहे हैं:


जिनको धीरज -विश्वास है,उन्हें हमसे कहने की जरुरत नहीं परती। सब काम भगवान ठीक कर देते हैं। सच्चे भक्त हैं -कभी पत्र तक नहीं देतें।


महाराज जी की ये बात सरल है, जो समझ जाए उसके लिए संकट का समय काटना थोड़ा कम कठिन हो जाता है।जब वो परम आत्मा हमें हमारे बुरे कर्मों का फल दे रहा होता है या ये कहें, जब हम संकट के समय से गुज़र रहे होते हैं तो हम, महाराज जी के भक्त, अपना धैर्य खो देते है कभी कभी, हमें चिंता होती है,  भय होता है - या दोनों होते हैं।चिंता इसलिए की हम भविष्य की अनिश्चितता से व्यथित हो जाते हैं, हम सोचते हैं की हमारी मुसीबतों का अंत कब होगा …..  होगा या नहीं होगा ….इत्यादि। और भय संभवतः इसलिए क्योंकि हम ऐसी -ऐसी नकारात्मक बातें सोचने लगते हैं जिनका प्रायः कोई आधार ही नहीं होता !


हम महाराज जी से गुहार लगाते हैं, अपनी रक्षा करने के लिए। ऐसे समय में कभी -कभी हमारा ये स्मरण कर पाना कठिन हो जाता कि बुरे समय में महाराज जी अपने सच्चे भक्तों का विशेष ध्यान रखते हैं। और उनकी दृष्टि में सभी भक्त हैं- हर समय। फिर जैसे जिसके भाव होते हैं महाराज जी के लिए -वैसे ही वो महाराज जी को अपने समीप पाते हैं।


हमें अपनी आस्था महाराज जी के लिए ऐसी बनानी है जिससे हमारा ये विश्वास दृढ़ हो सके की महाराज जी सदैव हमारे साथ हैं (क्योंकि ये संभव है)। इसलिए हमें महाराज जी को अपनी अवस्था के बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। वे सब जानते हैं !!


अपने भावों में सच्चाई लाने लिए, विश्वास दृढ़ करने के लिए सर्वप्रथम हमें महाराज जी के लिए समर्पण की भावना लानी होगी। हम जो हैं, जैसे हैं या जिस तरह की स्थिति में हैं, महाराज जी के संरक्षण में हैं या उनके हुकुम से हैं। भविष्य में जो होगा, वो भी महाराज जी के हुकुम से ही होगा। इस बात को हमें अपनेआप को याद दिलाते रहना होगा - नियमित रूप से।
वो परम आत्मा जिसने इस संसार को बनाया है, जो इस संसार को चलाता भी है, जिसने इस संसार के समस्त जीव, जंतुओं को बनाया है, हम सब को बनाया है, महाराज जी ने हमें समझाया है की वो परम आत्मा बहुत दयालु भी है, वो किसी का बुरा नहीं चाहता।


बस उसका एक नियम सर्वोपरि है - जो जैसा कर्म करेगा वो वैसा ही भरेगा। और इस नियम से कोई बच नहीं सकता- कोई भी नहीं!! दुर्भाग्यवश हम अच्छे कर्म कम और बुरे अधिक करते हैं, विकारों के आधीन होकर। फिर उनका फल भुगतते हैं। अब ये कर्म- फल हमें कब, कैसे, कितना, कितनी बार मिलेगा इत्यादि, ये ईश्वर स्वयं तय करता है। हाँ इस पूरी प्रक्रिया में अंततः हमारा कल्याण निहित है। ये निश्चित है।


हमें संकट के समय उस स्थिति से निकलने के लिए अपने प्रयत्न करते रहना है, कर्म करते रहना है और अधीर होने से बचना है। हमें अपने आप को ये भी याद दिलाते रहना होगा, विश्वास दिलाते रहना होगा की महाराज जी और वो परम आत्मा सही समय आने पर हमारी नैया पार लगा ही देंगे।


ये विश्वास ही हमारी चिंता का समाधान भी है। और यही विश्वास हमें धैर्य रखने की शक्ति भी देता है।और जहाँ तक हमारे भय का प्रश्न है (जैसा हम आरम्भ में बात कर रहे थे), तो ऐसे भय प्रायः आधारहीन होते हैं। इसीलिए जिन नकारात्मक विचारों की वजह से हम प्रायः भयभीत होते हैं उनमें से अधिकांश कभी फलीभूत ही नहीं होते। जब महाराज जी ने अब तक हमारी रक्षा की है तो वो आगे भी करेंगे। आखिर हम उनके हुकुम से हैं। सब महाराज जी के लिए हमारे भाव का खेल है और यदि हमारी आकांशा ये है कि वो सर्वशक्तिशाली और सर्वज्ञ परम आत्मा, जो सर्वव्यापी भी है -हमें संकट के समय में कम से कम डाले तो हमें अपने महाराज जी के उपदेशों पर चलना होगा। चलने की ईमानदार कोशिश तो करनी हो होगी।


महाराज जी सबका भला करें।


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