प्रधानमंत्री जी को चुनाव के समय ही क्यों याद आया बिहार ....?
भारतीय लोकतंत्र में आम आदमी को एक ही अधिकार मिला है और वो है चुनाव का। लोग अपने मत का प्रयोग अपने मन से करने को स्वतंत्र हैं और इसी वोट के लिए लोगों को सपने दिखाए जाते हैं। चुनाव का समय आते ही बड़े - बड़े वादों ,शिलान्यासों आदि की झाड़ियां पक्ष - विपक्ष दोनों ही तरफ से लगा दी जाती हैं और चुनाव जितने के बाद चुनाव के समय किये गए वादे भुला दिए जाते हैं। हमारे देश में यह परम्परा वर्षों से चलती आ रही है।
ऐसी परम्परा प्रचलित होने के बावजूद सवाल यह उठता है कि जब सभी पार्टियाँ ऐसा करती है और करती आयी है तो फिर देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही सवाल क्यों ?
2011 के अन्ना आंदोलन से पहले देश अपने पुराने ढर्रे से चल रहा था। 2011 जनांदोलन के बाद देश में बदलाव की लहर चली,उस आंदोलन से निकले अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के नाम से राजनीतिक पार्टी का गठन किया,जिसे पुरे देश में अपार समर्थन मिला,लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव आते आते अरविन्द केजरीवाल की अतिमहत्वाकांक्षा ने उसे बदनाम कर दिया और देश के नए नायक बनकर उभरे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोगों ने हाथों हाथ लिया और उनके हाथों में देश की बागडोर थमा दिया। देश के मतदाताओं ने मतदान के समय यह नहीं देखा कि वो किस उम्मीदवार को वोट दे रहा है उसे सिर्फ मतलब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने से था। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी ने जनता को बड़े - बड़े सपने दिखाए,उन्होने ऐसे सपने दिखाए जैसे लगा कि पूरा देश एकदम से बदल जायेगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने वाकई कुछ ऐसे काम किये जिनके लिए उन्हें इतिहास हमेशा याद रखेगा। लेकिन अगर बिहार की बात करें तो बिहार आज भी वहीँ है जहाँ पहले था।
1990 के बाद देश में एक दौर चला इस दौर में बहुत से क्षेत्रीय दलों का गठन हुआ जो पूर्णतया जातिवाद पर आधारित था। उसी जातिवाद के पुरोधा लालू यादव थे। यादव,मुसलमान और दलित की तिकड़ी फिट कर इन्होने 15 वर्ष बिहार पर राज किया। इन 15 वर्षों में बिहार 30 वर्ष पीछे चला गया। उसके बाद 2005 में नितीश कुमार सत्ता में आये उन्होंने बिहार की रूप -रेखा ही बदल दी। नितीश कुमार के प्रथम 5 वर्ष के कार्यकाल ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर का नेता बना दिया। नितीश कुमार का वर्तमान में यह तीसरा कार्यकाल है और शायद चौथी बार भी उनका पलड़ा औरों के मुकाबले भारी है। लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में जैसे ही नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया उन्होने बजेपी से नाता तोड़ने का फैसला ले लिया,मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही नितीश ने इस्तीफा भी दे दिया ,लेकिन फिर बाद में उन्होंने फिर से कुर्सी संभाली ,अपने धुर-विरोधी राजद से हाथ भी मिलाया फिर वहां से लौटकर पुराने मित्र भाजपा के पास आ गए और यहीं से नितीश कुमार राष्ट्रीय स्तर से क्षेत्रीय स्तर पर पहुँच गए।
नितीश कुमार ने बिहार को नयी पहचान दिलाई इसके वाबजूद भी बिहार की जनता ने नितीश से ज्यादा प्रधानमंत्री मोदी को तवज्जो दिया। प्रधानमंत्री मोदी से अन्य प्रदेशों की तरह बिहार भी बहुत आस लगाए बैठा है। बिहार में वर्षों से पलायन चरम पर है। देश ही नहीं विदेशों में भी बिहार के लोग अधिकारी से लेकर मजदूर तक करते मिल जायेंगे। कुव्यवस्था के कारण बिहार में रोजगार की बहुत कमी है। ऐसे में रोजी -रोटी के तलाश में ये शहर दर शहर भटकते रहते हैं। आज के समय में बिहार में घरों में सिर्फ बूढ़े माँ -बाप या ताले ही दिखते हैं। रोजी - रोटी के लिए अन्य प्रदेशों पर आश्रित बिहारी आये दिन देश के कई राज्यों खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में मार खाने को विवश हैं। गलती मनुष्य से ही होता है लेकिन किसी एक की गलती की वजह से पुरे प्रदेश को बदनाम करना या उस प्रदेशवासियों को पीटना कहाँ का न्याय है। पीटने-पिटाने का सिलसिला राज ठाकरे ने किया था,लेकिन उस समय भी उसे रोकने कोई नहीं आया ना ही बिहारियों के साथ कोई खड़ा दिखा , ठीक उसी तरह जब गुजरात से बिहारियों को पीटकर भगाया जा रहा था तब प्रधानमंत्री मोदी ने भी कुछ नहीं बोला था।
आजादी के बाद देश में कांग्रेस ने अपने सहयोगियों के संग 54 वर्ष तक राज किया। 6 साल अटल बिहारी बाजपाई ने राज किया,उन्होंने अपने कार्यकाल में मैथिलि भाषा को सम्मान दिया साथ ही उनके द्वारा ही शुरू कराये गए स्वर्णिम चतुर्भुज योजना की वजह से बिहार में सड़को का जाल बिछाया गया। उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी से बिहार की बहुत अपेक्षाएं थी,बिहार ने सोचा चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री हुआ है तो निश्चय ही बिहार की तस्वीर बदलेगी,बंद पड़े चीनी मिल खुलेंगे,पेपर मिल खुलेंगे ,रेल नेटवर्क का जाल बिछेगा,औद्योगिक विकास होगा लोगों को रोजगार से अवसर मिलेंगे,पलायन पर ब्रेक लगेगा। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री ने बिहार में विकास कार्य नहीं किये हैं। किये हैं लेकिन जिस रफ़्तार से बिहार को जरुरत है और थी उस रफतार से नहीं हुआ।
बिहार देश में जितनी भी सरकारें बनी उन सभी सरकारों में बिहार के सांसद / नेताओं को अच्छे मंत्रालय मिले हैं लेकिन बिहार का दुर्भाग्य है कि बिहार के सांसद / नेताओं ने अपने ही क्षेत्र के लिए उतना काम नहीं किया जितना करना चाहिए था।अभी के कोरोना काल में भी बिहारियों ने ही सबसे ज्यादा कष्ट सहे। प्रधानमंत्री ने पुरे देश के गरीबों के लिए अनाज , गैस आदि फ्री कर दिया जिससे बिहारवासी भी लाभान्वित होंगे लेकिन पलायन रोकने पर कोई काम नहीं किया। अभी चुनाव के समय में जो भी शिल्यानास हो रहे हैं अगर वो 2-3 वर्ष पहले हो जाते तो निश्चय ही बिहार में बहार देखने को मिलती। देश ने 15 प्रधानमंत्री देखे लेकिन देश को सबसे ज्यादा उम्मीद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही है क्योंकि इन्होने सबसे अधिक सपने दिखाए,बड़े-बड़े काम करके दिखाए लेकिन बिहार की बारी आई तो इन्हे चुनाव के समय ही बिहार याद आया। अगर प्रधानमंत्री ने ऐसे सपने नहीं दिखाए होते तो आज शायद उनसे यह नहीं पूछने जरुरत नहीं पड़ती कि "प्रधानमंत्री जी को चुनाव के समय ही क्यों याद आया बिहार ....?"
(जितेन्द्र झा)