राजनीति में फेल हैं देश के सभी युवराज


प्राचीन काल में हमारे देश में राजा - रजवाड़ों की प्रथा थी। उस समय एक से बढ़कर एक प्रतापी राजा हुआ करते थे। राज गद्दी पर बैठने का अधिकार राज परिवार का ही होता था। राजा देश चलाने के लिए अपने योग्य पुत्र को युवराज चुनते थे और उस युवराज को अपने ही देख-रेख में राजा ,राजा बनने लायक बनाते थे जो आगे चलकर अपने दम पर लोकप्रियता हासिल करते थे। जिस तरीके सोने को आभूषण का रूप देने से पहले उसे आग पर तपाया जाता है ठीक उसी प्रकार राजा बनने से पहले युवराज को हर मुश्किलों से वाकिफ कराया जाता था। उस समय के युवराज गुरुकुल में साधारण बच्चों की भाँति शिक्षा ग्रहण करते थे,गुरुकुल की सफाई,जंगल से लड़की काटना,भोजन पकाने के लिए नदी से जल लाना आदि काम युवराज साधारण परिवार के बच्चों की तरह करते थे। जैसा की आपने रामायण , महाभारत जैसे कई धारावाहिकों में देखा होगा। गुरुकुल से शिक्षा पा लेने के बाद युवराज को राजा के दरवार में राजा की गद्दी के बगल में बने आसन (कुर्सी) पर बैठाया जाता था और राज दरवार की कार्रवाई जब तक चलती थी राजा के साथ युवराज भी बैठा रहता था।


आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था में जो भी तथाकथित राजा हमारे देश में हुए वो अपना राज - पाट तो चला लिए लेकिन काबिल युवराज कोई नहीं बना पाए। 


देश के सबसे बड़े तथाकथित युवराज हैं राहुल गाँधी बाँकी सब उनसे छोटे हैं। वर्तमान में देश में कई तथाकथित युवराज हैं 1. राहुल गाँधी 2. अखिलेश यादव 3. जयन्त चौधरी 4. तेज प्रताप यादव 5. तेजस्वी यादव 6. चिराग पासवान 7. उद्धव ठाकरे संग पुत्र आदित्य ठाकरे 8. कुमारस्वामी आदि। इन सभी युवराजों को गद्दी तो परिवार के बदौलत मिली लेकिन राजनीति में इन में से कोई भी युवराज सफल नहीं नजर आ रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है लुटियन्स जोन।


उक्त युवराजों के पिता या परिवार अपने दम पर सत्ता में आये इन्हे जमीनी हकीकत का ज्ञान था लेकिन अपने युवराजों को इन्होने जमीनी हकीकत से दूर रखा। ये हाई सिक्योरिटी में रहे,हाई प्रोफाइल लोगों के साथ रहे और अभी भी चापलूसों के बीच ही ये रहते हैं। राजनीति में एक दौर चापलूसी का आया जो अभी तक सफल है। 


अगर बात देश के सबसे बड़े युवराज राहुल गाँधी की करें तो ये दलित के घर ठहरे ,किसान रथ निकाला,झोपड़ियों में रात गुजारी लेकिन गरीबों को अपनी बातों या विचारों से प्रभावित नहीं कर पाए क्योंकि इनको जानकारी ही नहीं कि गरीब और गरीबी है क्या। ठीक वही हाल युवराज अखिलेश यादव का है। वर्ष 2012 में अखिलेश यादव के पिता और उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर समजवादी पार्टी ने बहुमत हासिल किया और पिता मुलायम सिंह यादव ने पुत्र (तथाकथित युवराज) का राज तिलक किया। मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश का विकास किया। अगर इतिहास यह ढूंढने का प्रयास करेगा कि उत्तर प्रदेश में किन - किन मुख्यमंत्रीयों के कार्यकाल में विकास हुआ तो उसमे एक नाम अखिलेश यादव का भी आएगा। लेकिन इसके बावजूद भी युवराज अखिलेश 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारे।आज राजनीति में वो भी फेल हैं। तथाकथित युवराज जयन्त चौधरी आज जो कुछ भी हैं वो अपने दादा स्व चौधरी चरण सिंह के दम पर हैं। स्व चौधरी चरण सिंह बड़े किसान नेता थे। जमीनी हकीकत तो यह है कि उनके जैसा मुख्यमंत्री कोई हुआ ही नहीं जिसने किसनों के दर्द को समझा हो। उनकी इस विरासत को ना तो जयंत के पिता अजीत सिंह आगे बढ़ा पाए और ना ही यह गुण जयंत में देखने को मिलता है।


बिहार में एक तथाकथित राजा के दो पुत्र हैं जो युवराज होने की दावेदारी पेश करते नजर आते हैं। तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव। लालू यादव अपने राजनीतिक कुटिल चालों के दम पर खुद भी मुख्यमंत्री बने और पत्नी को भी मुख्यमंत्री बना लिया।लालू यादव के जेल जाने के बाद इनके दोनों पुत्र तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव मैदान में आये , इनकी कहानी तो यह है कि पिता के जेल जाने के बाद यह अपने परिवार को भी नहीं संभल पाए। लालू के जेल जाते ही इनका परिवार बिखर गया यानि इनकी बड़ी बहु घर छोड़कर चल दी। जब ये दोनों भाई अपना छोटा सा परिवार नहीं संभल पाए तो बिहार जैसा राज्य कैसे संभालेंगे। लालू यादव के बाद बिहार के सफलतम नेताओं में रामविलास पासवान का नाम आता है। रामविलास पासवान आज जो भी हैं वो अपने राजनीतिक क्षमता के बल पर हैं लेकिन उनके पुत्र तथाकथित युवराज चिराग पासवान की अभी तक की राजनीति को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि वो अपने पिता के बराबर भी सफलता हासिल पर पाएंगे,इसका नमूना इन्होने झाड़खण्ड चुनाव 2019 में दिखा दिया है। 


महाराष्ट्र में एक बड़ा नाम था "बाला साहब ठाकरे" । उसी बाला साहब ठाकरे के पुत्र और पौत्र हैं उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे। महाराष्ट्र पर अपना आधिपत्य स्थापित करने वाले "बाला साहब ठाकरे" ने कभी चुनाव नहीं लड़ा और ना ही किसी सरकार में शामिल हुए। जबकि उन्होंने शिवसेना के नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई और भाजपा के साथ गठबंधन सरकार में भी रहे। लेकिन उनके मरणोपरांत उनके पौत्र आदित्य ठाकरे चुनाव लड़े और जीत हासिल की तदोपरान्त उनके पिता तथाकथित युवराज उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हुए लेकिन कुछ ही महीनों में उनकी सरकार की बदनामी शुरू हो गई है। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के पुत्र हैं कुमारस्वामी। मुलायम सिंह यादव की तरह ही पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा अपने सपरिवार (पुत्र,पौत्र आदि) को राजनीति में ला चुके हैं लेकिन वहीँ उनका बड़ा पुत्र कुमारस्वामी राजनीति में फेल हैं।


अब सवाल उठता है कि ये सभी तथाकथित युवराज राजनीति में फेल क्यों हैं। कारण है कि इन्हे जमीनी हकीकत का कोई ज्ञान नहीं है , जमीनी हकीकत के लिए ये गूगल पर ही आश्रित हैं साथ ही इनको राय (विचार) देने वाले जो भी लोग हैं वो चापलूस हैं। समय भी चापलूसी का है जैसा कि कुछ दिन पहले कांग्रेस में चले लेटर वार में देखा गया है। राजनीति में चापलूसी पहले भी चलती थी लेकिन तभी के जो तथाकथित राजा थे उन्हें जमीनी हकीकत का ज्ञान होता था। आज के चापलूस गूगल पर पड़े हकीकत ही इन तथाकथित युवराजों को बताते हैं और युवराज भी वही करते हैं तो चापलूसों द्वारा गूगल से ढूंढ कर दिया जाता है। आज के राजनीतिक दौर में अगर ये तथाकथित युवराज सफल होना चाहें तो इन तथाकथित युवराजों को चाहिए कि वो एयरकंडीशन कमरों,कार्यालयों व गाड़ियों से बाहर निकले और देश व प्रदेश के जमीनी हकीकतों को समझने की कोशिश करें।


1990 के बाद जो भी नेता सफल हुए वो जातिगत राजनीति को बढ़ावा देकर ही सफल हुए ,लेकिन आज के दौर में जातिवाद वाली प्रथा पीछे छूट रही है और विकास व अधिकार का मुद्दा आगे चल रहा है। इन सभी तथाकथित युवराजों को चाहिए कि वो ऐसे मुद्दे उठायें जो समाज के हर वर्ग को प्रभावित करता हो। उदाहरण के तौर पर अभी कोरोना काल में विद्यालय फीस बड़ा मुद्दा है जिससे समाज का हर वर्ग और हर जाति के लोग प्रभावित हैं लेकिन ऐसे मुद्दे को कोई भी तथाकथित युवराज मुद्दा नहीं बना रहे हैं। 


(जितेंद्र झा)


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