सावधान लालची भेड़ियों से
लालची भेड़ियों से सावधान रहने का समय आ गया है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि केन्द्र सरकार ने 21 सितम्बर से विद्यालय खोलने की सहमती दे दी है। जिसपर राज्य सरकार विचार - विमर्श कर रही है।केंद्र सरकार ने प्रथम चरण में 9 से 12वीं कक्षा के बच्चों को उनके माता-पिता के अनुमति के आधार पर ही विद्यालय बुलाकर पढ़ाई शुरू करवाने की अनुमति दी है। इस खबर को सुनते ही इन लालची भेड़ियों (विद्यालय संचालकों) के लाड़ टपकने लगे हैं। सभी विद्यालय संचालक मुख्य अख़बारों में अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। उनके विचार से उनके उतावलेपन का अंदाजा आप स्वयं ही लगा सकते हैं।
देश में जब से कोरोना का प्रसार हुआ तब से आज तक ये विद्यालय संचालक इसी उम्मीद में थे कि कब विद्यालय खुले और उनकी कमाई शुरू हो। कोरोना काल में भी ये खूब कमाएं हैं लेकिन उतने नहीं कमा पाए जितना कमाना चाहते थे। अभिभावकों ने कोरोना काल का फीस माफ़ करने हेतु शासन - प्रशासन सभी से गुहार लगाई। कुछ अभिभावकों ने फीस जमा किये तो कुछ ने अभी तक जमा नहीं किये ,जिसके कारण ये भेड़िये ज्यादा परेशान हैं वो सोचते हैं कि विद्यालय खुलेगा तो पैसा वसूल ही लूँगा। इनकी वसूली महीनों से बंद है वो भी तब जब इनको सरकार और विपक्ष दोनों का समर्थन है।
जुलाई महीने से ही अभिभावक आंदोलित हैं और सरकार से कोरोना काल का फीस माफ़ करने / अनुचित फीस ना लेने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन इन अभिभावकों के आंदोलन पर अभीतक ना तो सरकार ने ध्यान दिया और ना ही विपक्ष। कारण बिलकुल स्पष्ट है इन भूखे लालची भेड़ियों की पकड़ पक्ष में भी है और विपक्ष में भी। और अपनी लालच के कारण अब ये मासूम बच्चों की बलि चढाने पर आमादा हैं। अगर सरकार ने विद्यालय खोलने की इजाजत दे दी तो क्या आपको लगता है इसे बच्चों के माँ - बाप की अनुमति लेने की जरुरत पड़ेगी ? हरगिज नहीं। सरकार से आदेश पाते ही ये लालची भेड़िये भूखे शेर हो जायेंगे और सीधी भाषा में अभिभावकों को धमकी देंगे "विद्यालय खोल दिया गया है अब ऑनलाइन पढाई बंद करने जा रहा हूँ बच्चे को विद्यालय भेजना हो तो भेजो"। अब मजबूरी में माँ - बाप अपने कलेजे के टुकड़ों को कोरोना की भेंट चढाने विद्यालय पहुँच जायेंगे।
जबसे अनलॉक 4 शुरू हुआ है तब से कोरोना के मामले और भी बढ़ने लगे हैं। क्या ऐसे में विद्यालय खोलना उचित है ? पैसे के खातिर किसी और के बच्चे को बलि का बकरा बनाना उचित है ? भगवान् ना करे कर अगर किसी बच्चे की मौत कोरोना से हो जाए तो क्या सरकार या विद्यालय प्रबंधन उस बच्चे की जिन्दा लौटा पायेगा ? क्या उस माँ की उजड़ी कोख की भरपाई करेगा ? क्या सरकार को लगता है कि ये भेड़िये इतने सीधे हैं कि बच्चे को विद्यालय लाने से पहले माँ - बाप की अनुमति लेंगे ?
कभी नहीं। ये भेड़िये उल्टा मास्क , सेनिटाइजर और नैपकिन बेचने का नया धंधा शुरू कर देंगे। ये कहेंगे सभी बच्चों के मास्क एक सामान होने चाहिए। सभी बच्चे का सेनिटाइजर एक सामान होना चाहिए।
जिला विद्यालय निरीक्षक,लखनऊ डॉ मुकेश कुमार सिंह ने 1 सितम्बर 2020 को पत्र जारी कर लखनऊ के नामी विद्यालय "सीएमएस" को चेतावनी दी थी ,फिर भी यह विद्यालय नहीं सुधरा और ना ही डॉ सिंह दुबारा उन दुखियारों का हाल - चाल लिए। "सीएमएस" ने जिन बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा से वंचित कर दिया था उसे 10 दिन बीतने के बाद भी वापस नहीं लिया गया वो भी तब जब डॉ सिंह खुद फोन करके भी विद्यालय संचालिका को समझा चुके थे उसके बाद उन्हें पत्र लिखने की जरूरत पड़ी जैसा कि उन्होंने अपने पत्र में खुद ही लिखा है।
अब आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिये सरकार बड़ी या विद्यालय संचालक ? अगर अपने बच्चे को कोरोना की भठ्ठी में ना डालना हो तो सरकार के गाइडलाईन को ठीक से पढ़ें और उसी के अनुरूप कार्य करें। क्योंकि ये लालची भेड़िये अपनी लालच की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और इनका ना तो सरकार कुछ बिगाड़ सकती है और ना ही विपक्ष। क्योंकि ये सरकार में भी है और विपक्ष में भी।
(जितेन्द्र झा)