श्राद्ध भले ही मृत्यु के बाद किये जाते हों मगर श्रद्धा जीते जी रखी जा सकती है
श्राद्ध भले ही मृत्यु के बाद किये जाते हों मगर श्रद्धा जीते जी रखी जा सकती है। एक बात समझना आवश्यक है जीते जी माता-पिता, दादा-दादी की पूजा का अभिप्राय क्या है ?
अपने माता-पिता और बुजुर्गों से अच्छा व्यवहार करना और समय-समय पर उनका दुःख-सुख पूछना ही उनको पूजना है। इस समयाभाव वाले युग में हमने अपने बुजुर्गों को पूजना तो दूर उनका हाल-चाल पूछना भी छोड़ दिया है। वो इसीलिए बेहाल हैं कि तुम हाल तक नहीं पूछते हो।
ऐसे में उनके साथ किया गया प्रेम व्यवहार भी किसी अनुष्ठान, किसी पूजा और किसी सत्कर्म से कम नहीं है। श्राद्ध इसलिए आवश्यक है कि वह दिवंगतों को तृप्त करता है और श्रद्धा इसलिए आवश्यक है क्योंकि वह जीवित लोगों को तृप्त करती है।