तीव्र भक्ति योग सदा संवर्द्धन शील होता है
इस जगत में मनुष्य मात्र के कल्याण का एक मात्र साधन है तीव्र भक्ति योग।
भक्ति योग द्वारा भक्त को अपने मन को श्रीकृष्ण में स्थिर कर देना चाहिए। भागवत जी मे भक्ति के साथ तीव्र शब्द का अनेक बार प्रयोग हुआ है। तीव्र भक्ति योग सदा संवर्द्धन शील होता है।
इसमें भक्त के अंतस में भगवान से मिलने की उत्कंठा रहती है। एक-एक दिन प्रभु मिलन की आशा में व्यतीत होता है। भगवत दर्शन के सतत इच्छा, मिलन की चाह व मन का निरंतर हरि कथा के श्रवण में लगना, ये तीव्र भक्ति योग के लक्षण है।