चिंता होने से हिरा की भस्म खाने से भी फायदा न होगा


चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


महाराज जी भक्तों को समझा रहे हैं कि: चिंता होने से हिरा की भस्म खाने से भी फायदा न होगा |

हम प्रायः चिंताग्रस्त भविष्य की अनिश्चिताओं को लेकर होते हैं।
क्या होगा, कैसे होगा, कब होगा, होगा की नहीं होगा, अगर ऐसा- वैसा हो गया तो ………. इत्यादि।
लेकिन चिंता करने से क्या उस समस्या का समाधान निकलेगा ????


नहीं ! संभवतः इसलिए महाराज जी समझा रहे हैं की चिंता का इलाज तो आयुर्वेद के श्रेष्ठम दवा - हिरा की भस्म, खाने से भी नहीं होगा।बहुत सी हमारी चिंताएं तो निराधार भी होती है।


यदि हम ऐसे विचारों को,ऐसी चिंताओं को याद करने का प्रयत्न करें जिनसे हम 1 साल पहले, यहाँ तक की 6 महीने पहले भी ग्रसित थे तो हम पाएंगे की 90 प्रतिशत से अधिक हुई ही नहीं। तो उनके लिए हमने क्यों अपना स्वस्थ ख़राब किया, उन क्षणों में अपनी खुशियों की बलि दी।


विचार आने को तो हम नहीं रोक सकते। हाँ जब हममें ऐसे नकारात्मक और निराधार विचार आने लगें, चिंताएं होने लगें तो सबसे अच्छा है कि हम अपने -आप से बात करें, अपने को ये सन्देश दें की ऐसा हमारे साथ होगा ही नहीं।


हम महाराज जी के भक्त हैं और उनके संरक्षण में हैं (उनके हुकुम से हैं जैसे महाराज जी कहते हैं)।  महाराज जी को हमारे पल -पल की खबर है और वे ऐसा निराधार -नकारात्मक हमारे साथ होने ही नहीं देंगे। और फिर ऐसे विचारों को सिरे से ही नकार दें। कोशिश करनी पड़ सकती है, शायद कई बार भी परन्तु ये संभव है - निसंदेह !! बस महाराज जी के लिए हमारे भाव सच्चे होने चाहिए।


जब हम ऐसे विचार आने लगते हैं जिनका कोई आधार है, तो भी चिंता करने से उनका समाधान नहीं निकलेगा - ये निश्चित है !!


इस परिस्थिति यदि हम ऐसी विपत्ति में अभी तक नहीं है तो चिंता नहीं, बल्कि चिंतन करना होगा, मनन करना होगा की महाराज जी उपदेश अनुसार (बिना किसी के साथ छल कपट किये, बिना अपनी वाणी से या शरीर के और किसी अंग से दूसरों दुःख दिए) - कैसे इस परिस्थिति से बचा जा सकता है। और यदि हम ऐसी विपत्ति में, परिस्थिति में पड़ ही चुके हैं तो कैसे उससे निकल सकते हैं।


दोनों ही परिस्थितियों में अपने विवेक का उपयोग करना हमारे लिए बहुत ही लाभदायक होगा है। तदुपरांत हमें वैसे ही कर्म करना होगा।


कर्म करने पश्चात् हम आत्माओं को उसका फल, महाराज जी पर और उस परम आत्मा पर छोड़ देना चाहिए।और उनसे प्रार्थना करें कि प्रभु, हम पूर्णतः आपकी शरण में, हमने अपना धर्म निभाया (कर्म कर दिया), हमें विश्वास है की आप अपना धर्म भी निभांएगे और हमारे प्रयत्नों का, हमारे कर्मों का -जो भी आप फल देंगे वो हमें स्वीकार होगा।बस फिर इस बात के लिए आश्वस्त हो जाएं की वही होगा जिसमें हमारा सर्वोत्तम हित है।


महाराज जी सबका भला करें।


Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें