दीनता आई नहीं - प्रेम पथ पाई नहीं
चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज
दीनता आई नहीं - प्रेम पथ पाई नहीं।
छोटा सा शब्द दीनता अपने अन्दर बहुत कुछ समेटे हुए है।
दीनता/ विनम्रता (humility) ही तो राह है सच्ची भक्ति की ।
महाराज जी के सच्चे भक्त अपने बुरे समय को यदि ध्यान से समीक्षा करेंगे तो पाएंगे की उनके वर्तमान से भी बुरा समय संभव हो सकता था। पर उस परम आत्मा की और महाराज की कृपा की वजह से ऐसा नहीं हुआ। इससे अपने वर्तमान को ना केवल स्वीकारने में बल्कि उसका सामना करने की भी हिम्मत मिलती है क्योंकि ये समझ में आ जाता है कि हम महाराज जी के संरक्षण में हैं।
फिर बुरे समय से निकलने के लिए किसी भी प्रकार के अहंकार रहित और विनम्रता पूर्वक कर्म करना संभव हो जाता है । इसलिए बुरे समय में ईश्वर और महाराज जी में विश्वास बनाये रखना है और उनका कृतज्ञ होना है।
अच्छे समय में तो कृतज्ञ रहना ही है - विनम्र भी रहना है। साथ ही साथ निस्वार्थ भाव से वंचितों की मदद भी करनी है। इससे ना केवल हमारे मन को प्रसन्नता होगी बल्कि वो परम आत्मा भी प्रसन्न होगा। महाराज जी का आशीर्वाद मिलेगा।
इसलिए अच्छे और बुरे -दोनों समय में ईश्वर का और महाराज जी का साथ पाने के लिए, हमें अपना आचरण दीन रखने का प्रयत्न करना होगा, विनम्र रखना होगा - व्यव्हार में, बोलचाल में भी -सभी के साथ।
संभवतः इसीलिए महाराज जी यहाँ पर भक्तों को इतनी बड़ी बात -कितने सरल शब्दों में समझा रहे हैं कि परमात्मा से प्रेम करने के लिए, उनकी सच्ची भक्ति के लिए - हमारे हर हाल में दीनता की आवश्यकता होती है - विनम्र होना होता है। ये इतना कठिन भी नहीं है।
ईश्वर के प्रेम पाने और उनके प्रेम करने के इच्छुक लोगों को ये पूर्णतः विश्वास करना होगा, ये मान के चलना होगा कि:
जो कुछ भी अच्छा -बुरा उनके जीवन में है, वो उस परम आत्मा का ही दिया हुआ है और समय के साथ उसी की मर्ज़ी से गुज़र भी जाएगा।
उन्होंने तो संभवतः ईश्वर की प्रेरणा पाकर कर्म किया है/था। उस कर्म का फल और उसका प्रारूप तो ईश्वर की इच्छानुसार ही होता है।
इसलिए दीन बनने में ही उनका कल्याण है।
संभवतः महाराज जी हमें ये भी समझा रहे हैं की उस परम आत्मा के/से प्रेम, उसकी सच्ची भक्ति के मार्ग में कभी -कभी तो अपना अस्तित्व मिटाकर ईश्वर में पूरा समर्पण करना पड़ता है। और दीनता के बिना तो ये सब संभव ही नहीं है।
महाराज जी सबका भला करें।