ध्यान, धुनी, प्रकाश, दशा, (और) लय, श्याम प्रिया मिलैं कढ़ि के


चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


प्रश्न: गुरूकृपा से अन्तर के फाटक खुल जाते हैं पर साधक स्वयं मेहनत करै और प्राप्त करै। कुछ लोगों का मत है कि मार्ग् बता देने के बाद गुरू का कार्य समाप्त हो जाता है, आप बतावें क्या सच है?
उत्तर (महाराज जी का):
गुरू वाक्य अनमोल रत्न हैं।
उसे विश्वास कर के पकड़ ले।
अपना भाव विशाल होना चाहिए।
बाबा रामसरन दास जी ने हमको लिखाया है:-
सत गुरू वचन भजन से बढ़िकै।
सुर मुनि सब हमसे यह भाख्यो (कहना/बोलना),
हम न कहैं कुछ गढ़ि के।
ध्यान, धुनी, प्रकाश, दशा, (और) लय,
श्याम प्रिया मिलैं कढ़ि के॥
जियतै ठौर ठिकान बनाओ, होय न सुनि लिखि पढ़ि के।
रामसरन कहैं अन्त त्यागि, तन चलो सिंहासन चढ़ि के।


धुनि, लय, दशा, ध्यान और फिर उस परम आत्मा से साक्षात्कार - मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में इन सब से होकर गुज़ारना पड़ता हैं। मानसिक और शारीरिक तैयारी के अलावा इस मार्ग में बहुत सा परिश्रम और उससे भी अधिक धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ ही लोग इस पर चल पाते हैं। और गुरु के मार्गदर्शन और संरक्षण के बिना इस मार्ग पर सफलता तो संभव ही नहीं है। कुछ ऐसी ही बात महाराज जी, बाबा रामसरन दास के पद निमित्त, भक्तों को संभवतः समझा रहे हैं।


जो लोग मोक्ष के इच्छुक नहीं भी हैं और सामान्य जीवन बिता रहे हैं, उनके लिए महाराज जी पुनः दोहरा रहे हैं की जीवन को सार्थक बनाने के लिए गुरु के वाक्य , गुरु के उपदेश जो अनमोल होते हैं,उन्हें अपने जीवन में उतरना होता है।


हमारे महाराज जी जैसे गुरु अपने शिष्यों पर नज़र रखते हैं। और सच्चे भाव से जो उनकी भक्ति करता है, उनके उपदेश पर चलता है (चलने की धैर्यपूर्वक कोशिश करता है), उसे महाराज जी प्रोत्साहन देते हैं, उसे महाराज जी के मार्गर्शन की अनुभूति होने लगती है  उस भक्त के जीवन का उतार -चढ़ाव, उसके प्रारब्ध काटने में महाराज जी उसके साथ होते हैं किसी भक्त को भला इससे अधिक क्या चाहिए हो सकता है।


महाराज जी सबका भला करें


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