सब हमारे भाव का खेल है


चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


एक अँधा था और हाथ पैर से लुंज भी था - वह बोला, हे ईश्वर तूने बहुतो से मुझे अच्छा बनाया, एक ने पूछा- अरे तू अँधा है और हाथ पैर से लुंज भी है, तू कैसे कहता है की बहुतो से अच्छा हूँ। वह बोला- ईश्वर ने मुझे ऐसा दिल दिया है की जिसमे मै उसे याद करता हूँ यह दिल उसने बहुतो को नहीं दिया।


महाराज जी कितना अच्छा उपदेश दे रहे है-
परमात्मा और गुरु के प्रति सच्चे भाव होने के लिए ये आवश्यक नहीं है कि वर्तमान में हम हर तरीके से सक्षम ही हों उनकी भक्ति कोई भी कर सकता है, उनके उपदेशों पर कोई भी चल सकता है - और इससे स्वयं हमारा ही उद्धार होता है सब हमारे भाव का खेल है भाव रूपी बेतार के तार से, भगवान के दरबार में क्षण-क्षण का समाचार पहुँचता रहता है -जैसे महाराज जी कहते हैं।


ऐसे सच्चे भाव ही हमें इस बात की समझ देते हैं की हमारी वर्तमान स्तिथि (अगर किसी भी प्रकार से संघर्षपूर्ण है), हमारे पूर्व कर्मों का ही फल है और परमात्मा/सद्गुरु की कृपा से इसका सामना करने की शक्ति भी मिलती है -ये अटल सत्य है इसका साक्षात्कार हममें से कई भक्तों को हुआ भी होगा और इस उदाहरण में तो इस अंधे व्यक्ति की अवस्था संभवतः अस्थायी भी नहीं लगती है (जैसे हममें से बहुतों की समस्याएं होती हैं)। पूर्व जन्मों के कर्मों के वजह से- इस जन्म में इस व्यक्ति का जन्म इन परिथितियों में हुआ है। परन्तु कुछ अच्छे कर्मों की वजह से इस व्यक्ति को ऐसा दिल भी दिया है जिसमें परत्मात्मा के लिए सच्चे भाव दिए हैं- जो बहुत लोगों के नहीं होते और इस व्यक्ति को अपनी दशा की वजह से परमात्मा से कोई शिकायत भी नहीं लगती, जैसा की हममें से बहुतों को मुसीबत से समय होती है। शायद इसलिए क्योंकि यह व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से जागृत है
इस जन्म में शरीर छोड़ने (मृत्यु ) के बाद- अगर इस व्यक्ति की आत्मा का विलय उस परम- आत्मा नहीं हो पाता है तो भी , अपने अच्छे कर्मों से वजह से इसका अगला जन्म बहुत ही बेहतर हालातों में होगा।


इसीलिए हमें महाराज जी उपदेशों के अनुसार परमार्थ और परस्वार्थ के मार्ग पर चलने की ईमानदार कोशिश तो करनी ही चाहिए अपने ही भविष्य को सुरक्षित करने के लिए,  सुखी करने के लिए। 


महाराज जी सबका भला करें


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