सिद्धि का वास्तविक अर्थ भौतिक वैभव नहीं अपितु आध्यात्मिक वैभव को प्राप्त करना है


नवरात्र के समापन यानि नवम दिवस में सिद्धि प्रदान कराने वाली देवी सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है। सिद्धि का अर्थ भौतिक वैभव नहीं अपितु आध्यात्मिक वैभव प्राप्त करना है। जो भगवान श्री कृष्ण की सुधि दिलाए वही सिद्धि है।


जो प्रभु का विस्मरण करादे वह दौलत किसी काम की नहीं। वह बाहर से तो तृप्त करती है पर भीतर का खालीपन नहीं जाता। 9 दिन के ये व्रत, अनुष्ठान व्यक्ति को शारीरिक और आत्मिक रूप से शुद्ध करते हैं। जिसका जीवन शुद्ध है वही बुद्ध है और वही सच्ची सिद्धि को प्राप्त कर पाता है।


शैल (पत्थर) पुत्री अर्थात जड़त्व से प्रारम्भ होने वाला यह पर्व सिद्धिका पर जाकर सम्पन्न होता है। जीवन का प्रारम्भ चाहे मूढ़ता से हो कोई बात नहीं पर समाप्ति सिद्धि (ज्ञान प्राप्ति) से हो, यही जीवन की वास्तविक उन्नति है। माँ से प्रार्थना, हमें कन्हैया के चरणों में प्रेम हो, ऐसी सिद्धि दे दो।


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