भक्ति करने के लिए वेश -भूषा, बाहरी दिखावा इत्यादि की आवश्यक नहीं होती


चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


ऐश, आराम छोड़ देने पर भजन हो सकता है।
आडम्बर छोड़कर नेम -टेम करना परता है।
शाम को रोटी ,सवेरे से -आधी खाय।


प्रात: के भोजन की अपेक्षा सायं का भोजन आधा होना चाहिये।


हम क्या खाते हैं, कब खाते हैं, कितना खाते इन सब बातों का सीधा सम्बन्ध भक्ति में हमारा मन लगने से है- इन बातों के महत्त्व के बारे में महाराज जी समय -समय पर भक्तों को समझाते रहे हैं, विशेषकर उन लोगों को जिन्हें भजन करते समय, भक्ति करते समय अक्सर ध्यान विचलित होने की समस्या रहती है। जिन्हें खाने -पीने का लोभ होता है उनके लिए ईश्वर की सच्ची भक्ति करना प्रायः संभव नहीं हो पता है।


इसके अलावा शाम को अधिक खाना खाने वालों के लिए भी भजन करना आसान नहीं होता। संभवतः इसलिए महाराज जी यहाँ पर समझा रहे हैं कि शाम का खाना हल्का होना चाहिए, आधा होना चाहिए प्रातः काल या दिन के खाने की तुलना में। ऐसा करने से स्वस्थ जीवनशैली के लिए लाभ तो होता ही है, भजन में मन लगाने में भी आसानी होती है। ईश्वर भजन में मन लगाने के सन्दर्भ में रजोगुणी- तमोगुणी भोजन पसंद करने वाले की स्थिति तो कठिन रहती ही है।


जिन्हें ईश्वर भक्ति की चाह है, जो महाराज जी की अनुभूति अपने समीप चाहते हैं उनके लिए ऐसा संभव होना थोड़ा सरल हो जाता है यदि वे सादा जीवन, सादी जीवन शैली अपनाते हैं। अपने अन्य कर्मों के अतिरिक्त थोड़ा समय ईश्वर की साधना करने के लिए, महाराज जी को याद करने के लिए, जो भी तरीका उनके लिए सुविधाजनक हो, करना चाहिए- नियमित रूप से। सुख के समय में भी।


और भक्ति करने के लिए वेश -भूषा, बाहरी दिखावा इत्यादि की आवश्यक नहीं होती है। ऊँची आवाज़ भी ज़रूरी नहीं है। अपनी भक्ति का प्रदर्शन करना व्यर्थ होता है। अपने आप को दूसरों के सामने बड़ा भक्त दिखाने से केवल हमारा अहंकार पोषित होता है, कल्याण नहीं होता है। अर्थात भक्ति में किसी भी प्रकार का आडम्बर की आवश्यकता नहीं होती है।


वो परम आत्मा हमारे मौन की भक्ति भी समझते हैं। ईश्वर की, महाराज जी भक्ति में उनके लिए हमारे भाव ही पर्याप्त हैं। ये भाव जो केवल हमारे और उनके बीच होते हैं।


हमें सच्चे भाव से उन्हें याद करना है और महाराज जी के उपदेशों पर ईमानदारी से चलने का प्रयास करना है। तदुपरांत अपनी सारी समस्याएं उन पर छोड़ देनी हैं। महाराज जी तो अपने भक्तों की सुध रखते ही हैं। उनके पास हमारी समस्याओं का कोई ना कोई हल होता है जो सही समय आने पर हमारे सामने भी आ जाता है, यदि हमने समस्याओं से निकलने के निरंतर प्रयत्न किया है।


महाराज जी सबका भला करें।


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