जीवन बीमा के इस युग में आज हमने धर्म को भी इस दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है


धर्म को अलग से करने की बजाय प्रत्येक कर्म को धर्ममय करना सीखो। आज हमारी प्रार्थना action बन कर रही गई है। होना यह चाहिए प्रत्येक action प्रार्थना जैसा हो जाए।


जीवन बीमा के इस युग में आज हमने धर्म को भी इस दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है। साल में एक धार्मिक आयोजन या अनुष्ठान रुपी क़िस्त जमा कर, साल या 6 महीने के लिए निश्चिन्त हो जाते हैं। साल में एक बड़ा आयोजन या पूजा करने की बजाय प्रत्येक कर्म को, व्यवहार को, आचरण को धर्ममय करना सीखो।


हमारा व्यवहार, आचरण, बोलना, सुनना, देखना, सोचना सब इतना लयबद्ध और ज्ञानमय हो कि ये सब अनुष्ठान जैसे लगने लग जाएँ। धर्म के लिए अलग से कर्म करने की आवश्यकता नहीं है अपितु जो हो रहा है उसी को ऐसे पवित्र भाव से करें कि वही धर्म बन जाए।


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