सच्ची भक्ति केवल भक्त और ईश्वर के बीच होती है


चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


ये संभवतः उस समय की बात है जब महाराज जी किसी भक्त को समझा रहे हैं जो की बुरे समय से गुज़र रहा होगा:
वचन मान ले - (तो) बस कल्याण हो जाय।
देखाऊ काम - भगवान और देवी देवताओं (को), और हमारे पसन्द नहीं है। 
न कहने की जरूरत, न लिखने की जरूरत है।
अपना भाव और विश्वास अटल रखने की जरूरत है।
 
महाराज जी का कहना है की जो उनके वचनों पर, उनके उपदेशों पर चलेगा उसका कल्याण निश्चित है।जो लोग उस सर्व शक्तिशाली परम आत्मा की, अपने इष्ट की या जिस भी देवी- देवताओं को वो मानते हों उनकी दिखावे वाली भक्ति करते हैं अर्थात विभिन्न तरह से दूसरों को ये जताने का प्रयत्न करते हैं की वे बहुत बड़े भक्त हैं, पर अंदर से भाव सच्चे नहीं हैं, कथनी और करनी में अंतर है तो ऐसे लोगों की भक्ति से ना तो उनके इष्ट प्रसन्न होते हैं ना ही महाराज जी।


सच्ची भक्ति केवल भक्त और ईश्वर के बीच होती है या भक्त और गुरु के बीच होती है  अपनी भक्ति के भाव किसी तीसरे के सामने प्रदर्शन करने की आवश्यकता नहीं होती है।


महाराज जी के प्रति अपने भाव सच्चे करने का सीधा तरीका तो उनके उपदेशों पर चलना ही है जो कुछ लोगों के लिए कठिन भी हो सकता है (वैसे है नहीं……यदि हममें अपने भावों को  सच्चा करने की इच्छाशक्ति हो तो !!)।


जीवन में अच्छा और बुरा समय तो केवल और केवल हमारे ही पूर्व कर्मों के फलस्वरूप होते हैं -उस सर्व शक्तिशाली परम आत्मा की अचूक व्यवस्था के अनुसार। कल्याण होने का तात्पर्य है की हमारे बुरे समय में महाराज जी हमारे साथ होते हैं उन्हें हमारे और पल -पल की खबर होती है। उन्हें कुछ बताने की आवश्यकता नहीं होती है। केवल महाराज जी के प्रति अपने भाव को दृढ़ करना है और धैर्य रखना है।


यदि कभी धीरज खोने लगे तो अपने आप को याद दिलाते रहना है हम महाराज जी के संरक्षण में है। ऐसी परिस्थितियों में हमारे साथ जो भी हो रहा है और जो आगे होगा उसमें महाराज जी की मर्ज़ी शामिल है (फिर कैसा भय ??)।


और बस इन्हीं विचारों से अपनी हिम्मत बनाये रखते हुए, सच्चे भाव से महाराज जी को याद करते रहना है, उनकी भक्ति करनी है।


सही समय, अर्थात ऐसा समय जिसमें हमारा और हमारे परिजन (जो ऐसे समय में हमारे साथ हैं) का कल्याण निहित है, उस समय पर महाराज जी के आशीर्वाद से सब ठीक हो जाएगा।


महाराज जी सबका भला करें।


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