सरकार के दावे गीले पटाखो की तरह फुस्स हो गए - पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव


लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि किसान और नौजवान भाजपा सरकार की गलत नीतियों के चलते गहरी मायूसी में है। इनकी दीवाली काली हो गई है। इतने बुरे हालात इनके कभी नहीं रहे। सरकार के तमाम दावे गीले पटाखो की तरह फुस्स हो गए हैं। गरीब की कहीं सुनवाई नहीं है। अब जनता को वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों का ही बेसब्री से इंतजार है जब वह अपनी तकलीफों का एक-एक कर हिसाब लेंगे।


किसान का धान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकने के बजाय बिचैलियों-आढ़तियों की भेंट चढ़ गया। करीब 20 लाख गन्ना किसानों का मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मण्डल की चीनी मिलों पर पिछले पेराई सत्र के 3,343 करोड़ रूपए बकाया है। प्रदेश में लगभग 10 हजार करोड़ रूपये गन्ना किसानों का बकाया है।


धान क्रय केन्द्रों पर अनियमितताओं के चलते किसान को अपनी फसल बेचने में नाकों चने चबाने पड़े। अकेले सम्भल में धान खरीदी का 28 करोड़ रूपया बकाया है। किसानों का बकाया चुकता करने में देरी दुःखद है। आखिर किसान कैसे मनाए त्योहार? पश्चिमी यूपी के किसानों की दीवाली भी फीकी रहेगी।


विडम्बना तो यह है कि स्वयं प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में धान खरीद के हालात अच्छे नहीं है। वहां 40 हजार मैट्रिक टन का लक्ष्य था किन्तु अभी तक सिर्फ 670 मैट्रिक टन धान ही खरीदा जा सका है। बेचने आ रहे किसान को बाद में आने को कहा जा रहा है। उनको धान बेचने के लिए 2021 का टोकन दिया जा रहा है। अगली फसल की बुवाई के लिए बिचैलियों को 1868 रूपये प्रति कुंतल रेट के बजाय रूपये 1100 में धान बेचने को किसान मजबूर है। कई जगह तो कागजों पर धान क्रय केन्द्र चल रहे हैं।


पराली के नाम पर किसानों को जेल में डालने वाली सरकार धान की कीमत देने में विफल। बिचैलिए किसान का हक मारकर अपनी जेबें भर रहे है। भाजपा सरकार के नए कृषि अधिनियम से किसानों को हो रहे नुकसान का अब खुलासा हो रहा है।नौजवानों का भविष्य भी अंधकार में है। प्रदेश में भाजपा राज के अंत के गिनेचुने महीने रह गए हैं। अब तक न तो कहीं निवेश आया और नहीं उद्योगों के लगने से रोजगार बढ़े। लाॅकडाउन के दौरान बचे खुचे उद्योग भी बंद हो गए। कल कारखानों में छंटनी हो गईं।भाजपा सरकार बहकाने के लिए नई नौकरियां देने के दावे चाहे जितने करे हकीकत यह है कि नौकरियां मिलनी तो दूर उनके जाने का खतरा ज्यादा बड़ा है।


वर्ल्ड इकोनामी फोरम के ताजा सर्वे के अनुसार देश में अगले 12 महीनों में 57 फीसदी लोगों की नौकरियां जाने की सम्भावना है। देश के इतिहास में पहली बार भयंकर मंदी आने का अंदेशा है। भाजपा सरकार के खोखले वादों की इस रिपोर्ट में खुलासा होता है।


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