जन्म सफल है उसका, प्रभु है उसके साथी

 

चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज

औरन को देखत भई, जिसकी शीतल छाती।


जन्म सफल है उसका, प्रभु है उसके साथी॥


हम से बहुत से लोग अहंकार से ग्रसित हैं और कुछ दूसरों की सफलता पर, खुशहाली पर उससे ईर्ष्या करने लगते हैं। क्यों ? शायद इसलिए कि जो दूसरे के पास है वो क्यों है या हमारे पास वैसा क्यों नहीं है।


जिससे हम ईर्ष्या कर रहे होते हैं उसे तो कोई अंतर नहीं पड़ता। कभी -कभी तो उसे पता भी नहीं होता :-) 


और जो ईर्ष्या करता है - सबसे अधिक वही उसकी अग्नि में जलता है। इसलिए जो हमें ईश्वर से प्राप्त हुआ हुआ है उसी में संतुष्ट रहने में ही हमारा हित है। कहते हैं ना - जो प्राप्त है वो पर्याप्त है। 


महाराज जी ने कई बार हमें दूसरों से ईर्ष्या से बचने को कहा है।


हम महाराज जी के भक्त हैं और उनके उपदेश अनुसार इस बात से भली -भांति परिचित हैं कि हम सब अपना -अपना भाग्य लेकर आये हैं, जो हमारे ही द्वारा किये गए पूर्व कर्मों पर आधारित हैं तो फिर दूसरों से तुलना करना ही गलत है, तर्कहीन है।


कितना अच्छा होता अगर हम महाराज जी के इस उपदेश अनुसार दूसरों की सफलता पर, उनकी खुशियों में ह्रदय से आनंदित होएं (ये संभव है-  अगर इच्छा शक्ति हो तो)। 


ऐसा करने से हम उस परम आत्मा का हमें इस जगत में भेजने का उद्देश्य पूर्ण करते है और हमारा जन्म सफल होता है। उस परम आत्मा के समीप जाने का ये एक और मार्ग हमारे महाराज जी ने दिखाया है। हमारे मन भी शांति भी आएगी।


जय गुरु महाराज जी की।

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