प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना - निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी और आगे की राह
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) पूरे फसल चक्र में सभी प्राकृतिक खतरों से किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए भारत सरकार की ओर से शुरू किया गया जोखिम को कम करने वाला सबसे बड़ा कार्यक्रम है। किसानों के सबसे कम प्रीमियम देने और फसल का उच्चतम मूल्य, बीमा से सुरक्षित करने वाली यह पहली योजना है। देश में आईआरडीएआई द्वारा पंजीकृत सभी सामान्य बीमा कंपनियां, जिनकी गांवों में अच्छी-खासी मौजूदगी है, को योजना के कार्यान्वयन के लिए सूचीबद्ध किया गया है। वर्तमान में, इरडा में पंजीकृत सभी 5 सरकारी कंपनियां और 13 निजी कंपनियां पैनल में हैं।
कंपनियों की संख्या बढ़ाने के पीछे मूल विचार ग्रामीण क्षेत्र में उनके बढ़ते हुए नेटवर्क और योजना के कार्यान्वयन में निजी क्षेत्र की दक्षता का लाभ उठाना है।
यह योजना अपने कार्यान्वयन के 5वें वर्ष में है और कार्यान्वयन में आ रही चुनौतियों का समाधान करने के लिए हाल ही में इसमें सुधार किए गए हैं, जिसमें सभी किसानों के लिए इसे स्वैच्छिक बनाना और सुचारू रूप से कार्यान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना शामिल है।
योजना से लाभ लेने के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों और बीमा कंपनियों की भागीदारी के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। योजना के कार्यान्वयन के पहले 3 वर्षों में, जिसका पूरा डेटा उपलब्ध है, राष्ट्रीय स्तर पर सभी बीमा कंपनियों के लिए संयुक्त रूप से दावों का अनुपात 89% रहा। इसका मतलब यह है कि बीमा कंपनियों की ओर से प्रीमियम के रूप में इकट्ठा किए गए हर 100 रुपये के लिए 89 रुपये का दावों के रूप में भुगतान किया गया। बीमा कंपनियों पर आमतौर पर फिर से बीमा करने और प्रशासनिक खर्चों के लिए 10-12 प्रतिशत खर्च आता है। इस प्रकार से पहले 3 वर्षों में अच्छे मॉनसून के बावजूद बीमा कंपनियों को मुश्किल से कोई नुकसान हुआ है। किसी भी भारी जोखिम वाली योजना का मूल्यांकन कम से कम 5 साल पूरा होने और राष्ट्रीय (कुल) स्तर पर किया जाना चाहिए। यह तर्क देना कि किसी विशेष कंपनी में किसी विशेष सीजन में ज्यादा या कम हानि अनुपात था, कंपनी या योजना के प्रदर्शन को देखने का सही तरीका नहीं है।
खरीफ 2019 का मौसम विशेष रूप से फसल के हिसाब से एक अच्छा मौसम था लेकिन बेमौसम भारी बारिश ने कटाई की गई फसलों को नुकसान पहुंचाया, जिससे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश राज्यों में पर्याप्त दावों का भुगतान हुआ, जहां क्रमश: दावा अनुपात 121% और 213% था। किसानों को दावों के भुगतान के लिए राज्य द्वारा बीमा कंपनियों को सीसीई डेटा समय पर साझा करने और प्रीमियम सब्सिडी के अपने शेयर को जारी करने की आवश्यकता होती है। और कुछ मामलों में फसल कटाई प्रयोग (सीसीई) डेटा साझा/राज्य सब्सिडी जारी करने में देरी के चलते आगे किसानों के दावों का भुगतान करने में देरी हुई है।
निजी बीमा कंपनियों समेत बीमा कंपनियों द्वारा कम दावा अनुपात और लाभ अर्जित करने को लेकर आलोचना की गई जो अधूरे डेटा पर आधारित है और इस कारण योजना की निराधार आलोचना होती है। बाद में जब सीजन के लिए पूरा डेटा उपलब्ध हो गया तो दावा अनुपात काफी बढ़ गया। सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध डेटा में अंतर की समस्या का समाधान करने के लिए कृषि मंत्रालय हर महीने सीजन वार डेटा जारी कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विशेषज्ञ सबसे ताजा आंकड़ों के आधार पर योजना के प्रदर्शन का विश्लेषण कर सकें।
तीन साल की अवधि (2016-17 से 2018-19) के लिए सरकारी और निजी बीमा कंपनियों के लिए डेटा का विश्लेषण करने पर, जिसके लिए अधिकांश डेटा प्राप्त हो गया है, सरकारी और निजी कंपनियों के लिए दावा अनुपात क्रमश: 98.5% और 80.3% है। खरीफ 2019 के लिए गुजरात, झारखंड और कर्नाटक से सीसीई डेटा प्राप्त नहीं हुआ है और रबी 2019-20 का डेटा आधा दर्जन राज्यों से लंबित है। ऐसे में 2019-20 के लिए निजी समेत सभी बीमा कंपनियों के लिए अंतिम दावा अनुपात लंबित डेटा के मिलने के बाद काफी बढ़ सकता है।
खरीफ 2020 से प्रभावी योजना के तहत बीमा कंपनियों को तीन साल की अवधि के लिए काम आवंटित करने का प्रावधान किया गया है, जो उच्च/निम्न दावा अनुपात के सीजन के संदर्भ में किसी भी अस्थिरता को औसत रूप में लाएगा। इसके साथ ही प्रीमियम जुटाने और बीमा कंपनियों द्वारा भुगतान किए गए दावों के संदर्भ में योजना के विश्लेषण के लिए एक आदर्श अवधि उपलब्ध कराएगा।
प्रीमियम के प्राइमरी ड्राइवर निम्नतम स्तर पर ऐतिहासिक उपज डेटा की अनुपलब्धता है और मानवीय त्रुटियों के कारण उपज डेटा की गणना/हिसाब और रिकॉर्डिंग में विसंगतियां हैं। सैटेलाइट इमेजरी, मौसम संबंधी आंकड़े और मिट्टी की नमी के आंकड़े को शामिल करते हुए एक मजबूत अंकगणितीय मॉडल के माध्यम से प्रौद्योगिकी आधारित उपज के आकलन से प्रीमियम की दरों को कम करने और योजना के कार्यान्वयन को स्थिर किया जा सकता है।
कृषि मंत्रालय ने बड़े पैमाने पर प्रमुख सरकारी, अंतरराष्ट्रीय और निजी तकनीकी एजेंसियों के साथ पहल की है और उम्मीद है कि अगले एक से दो वर्षों में उपज अनुमान के लिए प्रौद्योगिकी आधारित प्रोटोकॉल लागू हो जाएगा। इससे फसल बीमा योजनाओं के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण बदलाव होगा और लंबे समय तक छोटे किसानों की जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा।
(सुधांशु पांडे)
सचिव, डी/ओ कृषि और किसान कल्याण और डी/ओ खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण