पोर्क से बने उत्पादों के प्रयोग को 'हराम' माना जाता है


कोविड वैक्सीन और पोर्क जिलेटिन

दुनियाभर के धर्मगुरुओं के बीच इस बात को लेकर असमंजस है कि सुअर के मांस का इस्तेमाल कर बनाए गए कोविड-19 टीके धार्मिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं।

दरअसल जिलेटिन जानवरों की चर्बी से प्राप्त होता है। सुअरों की चर्बी से मिलने वाले जिलेटिन को 'पोर्क जिलेटिन' कहा जाता है। टीकों अथवा दवाओं के निर्माण में इस पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है। कई कम्पनी का मानना है कि इसके इस्तेमाल से वैक्सीन का स्टोरेज सुरक्षित और असरदार होता है। टीकों में सामान्य तौर पर पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल होता है और इसी वजह से टीकाकरण को लेकर लोगो की चिंता बढ़ गई है जो उनके कानून के तहत पोर्क से बने उत्पादों के प्रयोग को 'हराम' मानते हैं। 

टीकों के भंडारण और ढुलाई के दौरान उनकी सुरक्षा और प्रभाव बनाए रखने के लिये सुअर के मांस (पोर्क) से बने जिलेटिन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ कंपनियां सुअर के मांस के बिना टीका विकसित करने पर कई साल तक काम कर चुकी हैं। स्विटजरलैंड की दवा कंपनी 'नोवारटिस' ने सुअर का मांस इस्तेमाल किए बिना मैनिंजाइटिस टीका तैयार किया था जबकि सऊदी और मलेशिया स्थित कंपनी एजे फार्मा भी ऐसा ही टीका बनाने का प्रयास कर रही हैं।

हालांकि फाइजर, मॉडर्न और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने कहा है कि उनके कोविड-19 टीकों में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है, लेकिन कई कम्पनी ऐसी भी हैं जिन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनके टीकों में इन उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं।


निखिलेश मिश्रा

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