कामना की पूर्ति होने पर लोभ और कामना में बाधा पहुँचने पर क्रोध उत्पन्न होता है

 


पापों में प्रवृत्ति का मूल कारण है काम अर्थात संसारिक सुख भोग और संग्रह की कामना। इस काम रूप एक दोष में अनंत दोष, अनंत विकार, अनंत पाप भरे हुए हैं।

साधक के जीवन में राग और द्वेष (जो काम और क्रोध के ही सूक्ष्म रूप हैं) महान शत्रु हैं। ये दोनों ही पाप के कारण हैं।

एक कामना को ही पापों का मूल बताया जाता है। कामना की पूर्ति होने पर लोभ और कामना में बाधा पहुँचने पर क्रोध उत्पन्न होता है। यदि बाधा पहुँचाने वाला अपने से अधिक बलवान हो तो क्रोध की जगह भय उत्पन्न होता है।

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