भगवान को उनके भक्त की वही वाणी अच्छी लगती है, जो भाव से भरी हो
भगवान भाव के भोक्ता हैं। भगवान को उनके भक्त की वही वाणी अच्छी लगती है, जो भाव से भरी हो। उस वाणी को सुनकर प्रभु रीझ जाते हैं और दौड़े चले आते हैं।
जहाँ भाव का आभाव है और जीव में अपने शब्द चातुर्य-स्वर चातुर्य का थोड़ा भी अहंकार है तो भगवान को वह वाणी आकर्षित ही नहीं कर पाती।
भगवान किस प्रकार रीझे कोई नहीं जान सकता। आप कुमारिका गोपियों के चीरहरण करके रीझे और द्रौपदी का चीर बढाकर रीझे।