कलियुग में हरि नामसेवा प्रधान है


स्वरूप सेवा के लिए मन की शुद्धि अति आवश्यक है। मन में अनेक जन्मों का मैल भरा हुआ है। मन को शुद्ध करने के लिए हरि नामसेवा की आवश्यकता है।

स्वरूप सेवा में आनंद नहीं आता है क्योंकि मन व्यग्र है, चंचल है। जब तक स्वरूप सेवा में मन एकाग्र न हो तब तक हरि नामसेवा करो।

जो मन माया का स्पर्श करता है उस मन से मनमोहन की सेवा नहीं हो सकती। मन बार बार माया का विचार कर मलिन होता है। मन को शुद्ध करने का एकमात्र उपाय हरि नामसेवा है। कलियुग में हरि नामसेवा प्रधान है।

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