सारा पश्चिमी विज्ञान, भारतीय विज्ञान के पेट से ही निकल कर गया है

 


भारतीय ज्योतिष तीन अंगों से निर्मित है- खगोल, संहिता और होरा। फलित ज्योतिष का दूसरा नाम है होराशास्त्र। ज्योतिष के फलित पक्ष पर जहाँ विकसित नियम स्थापित किए जाते हैं, वह होराशास्त्र है। उदाहरणार्थ राशि, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, चलित, द्वादशभाव, षोडश वर्ग, ग्रहों के दिग्बल, काल-बल, चेष्टा-बल, ग्रहों के धातु, द्रव्य, कारकत्व, योगायोग, अष्टवर्ग, दृष्टिबल, आयु योग, विवाह योग, नाम संयोग, अनिष्ट योग, स्त्रियों के जन्मफल, उनकी मृत्यु नष्टगर्भ का लक्षण प्रश्न आदि होराशास्त्र के अंतर्गत आते हैं। 

भारतीय ज्योतिष में एक शब्द होता है, अहोरात्र अर्थात एक दिन और एक रात यानि कि 24 घण्टे। इस अहोरात्र में से अपभ्रंश (किसी शब्द का बिगड़ा हुआ रूप) होकर के शब्द बना - होरा।  जो कि अहोरात्र में से अ और त्र के हटने से बना। एक दिन में 24 होरा होती थीं और ये वो समय होता था, जिसमें पृथ्वी 15 अंश घूम जाती है। इस प्रकार 24 होरा में पृथ्वी 360 अंश घूम जाती है। इसी होरा, यानि कि पृथ्वी के घूमने के समय के अध्ययन को ज्योतिष में 'होराशास्त्र' कहते हैं । 

समय के अध्ययन करने वाले को, घण्टे के अध्ययन करने वाले को और घड़ियों का अध्ययन (समय) करने वाले को होरोलॉजिस्ट कहते हैं। ये होरोलॉजिस्ट शब्द कहाँ से आया, अब ये आपको बताने की आवश्यकता नहीं है।

इसी होरा से एक शब्द और निकल कर आया, जो होरा के अपभ्रंश से बना और वह है - hour यानि 1 घण्टे का समय। एक दिन में 24 होरा होती हैं और एक दिन में 24 घण्टे होते हैं। हमारे यहां होरा, अर्थात जितने समय मे पृथ्वी 15 अंश घूम जाये पर hour है। पश्चिम के समय विज्ञान का यही सूत्र आधार है।

ज्यादा विज्ञान विज्ञान न किया करें, सारा पश्चिमी विज्ञान, भारतीय विज्ञान के पेट से ही निकल कर गया है।

कर्मफललाभहेतुं चतुरा: संवर्णयन्त्यन्ये, 

होरेति शास्त्रसंज्ञा लगनस्य तथार्धराशेश्च ॥ (सारावली)

विद्वान लोग होरा शास्त्र को शुभ और अशुभ कर्म फल की प्राप्ति के लिये उपयोग करते हैं। लग्न और राशि के आधे भाग (१५ अंश) की होरा संज्ञा होती है।

सारांश:- भदावरी ज्योतिष सूर्य की होरा राजसेवा के लिये उत्तम है। चन्द्रमा की होरा सर्व कार्य सिद्ध करने के लिये शुभ है। मंगल की होरा युद्ध, कलह, विवाद, लडाई झगडे के लिये, बुध की होरा ज्ञानार्जन के लिये शुभ है। गुरु की होरा विवाह के लिये, शुक्र की होरा विदेशवास के लिये, शनि की होरा धन और द्रव्य इकट्ठा करने के लिये शुभ है।

किसी मनुष्य के जन्मकालीन लग्न द्वारा उसके जीवन के सम्पूर्ण सुख-दुख का निर्णय पहले ही कर देना होरा स्कन्ध का सामान्यतः मूल स्वरूप है। होरा स्कन्ध को जातक स्कन्ध भी कहा जाता है। कालान्तर में इसके भी दो भाग हो गए। जातक सम्बन्धी विषय जिसमें आया वह जातक कहलाया और दूसरा भाग ताजिक हुआ। ज्योतिष शास्त्र का जो स्कन्ध कुण्डलियों का निर्माण करता है और जो व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित है वह होराशास्त्र या जातक के नाम से विख्यात है। वराहमिहिर के समय में विद्वान लोग होरा शब्द के उद्गम के विषय में अनभिज्ञ थे।

बृहज्जातक में आया है कि कुछ लोगों के मत से होरा, 'अहोरात्र' शब्द के पहले एवं अंतिम अक्षरों को निकाल देने से बना है। होराशास्त्र पूर्वजन्मों में किए गए अच्छे या बुरे फलों को भली-भाँति व्यक्त करता है। वृहजातक में वराहमिहिर ने दो बातों पर विशेष बल दिया है-

(१) होराशास्त्र कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्तों से सम्बन्धित है ।

(२) शास्त्र बताता है कि कुण्डली एक नक्सा या योजना मात्र है जो पूर्वजन्म में किए गए कम से उत्पन्न किसी व्यक्ति के जीवन के भविष्य की ओर निर्देश करती है।

होराशास्त्र यह नहीं कहता है कि व्यक्ति की कुण्डली के ग्रह उसे यह या वह करने के लिए बाध्य करते हैं, बल्कि कुण्डली केवल यह बताती हैं कि व्यक्ति का भविष्य किन दिशाओं की ओर उन्मुख है।

सारावली में कल्याण बर्मा ने भी कहा है कि जो जातकशास्त्र है वही होराशास्त्र है और यह नियति के विषय में विवेचन का पर्यायवाची है। धनार्जन में यह बहुत सहायक है, आपत्तिरूप समुद्र में पोत के समान है तथा यात्रा या आक्रमण में मन्त्री के समान है। इन सब धारणाओं के फलस्वरूप भारतीय ज्योतिष उच्चाशययुक्त माना जाने लगा तथा इसने मानव जीवन को सदाचार पूर्ण बनाने में भी बहुत योगदान दिया। पुनर्जन्म के सिद्धान्त को प्रतिपादित करने में यह शास्त्र बहुत अग्रणी रहा जिसके फलस्वरूप भारतीयों की वर्तमान जीवन शैली अन्य देशों की अपेक्षा सदाशयता से परिपूर्ण एवं सुसंस्कृत होती गई।

वेबिलोन एवं असीरिया के लोगों ने अपने ज्यौतिष को तीन धारणाओं से युक्त माना था-

(१) नक्षत्र मन्दिर है जिसमें देव रहते हैं।

(२) नक्षत्र भविष्य के विषय में मनुष्यों को देवों का मन्तव्य बतलाते हैं।

(३) मानव का भाग्य मार्क-२ की अध्यक्षता में स्वर्गक सभा में निश्चित किया जाता है।

इसमें प्रथम धारणा को छोड़कर बाकी दो धारणाएँ भारतीय धारणाओं से सर्वथा भिन्न हैं। वेविलोन एवं ग्रीस में कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त नहीं पाए जाते हैं। अतः वे लोग अपने ज्योतिष को उच्चाशयवाला नही बना सके, जिससे कि उन सबों का वर्तमान जीवन सदाचारपूर्ण बन सके।


(निखिलेश मिश्रा)

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