कौटुम्बिक स्नेह में कुटुम्बियों की और भगवत्प्रेम में भगवान की प्रधानता होती है
कौटुम्बिक स्नेह या सांसारिक मोह और भगवत्प्रेम इन दोनों में बहुत अंतर होता है। कौटुम्बिक स्नेह में कुटुम्बियों की और भगवत्प्रेम में भगवान की प्रधानता होती है।
कुटुंब या परिवारीजनों से ममतायुक्त स्नेह हो जाता है तो उनके अवगुणों की ओर ख्याल जाता है नहीं है। किंतु ये मेरे हैं ऐसा भाव रहता है। ऐसे ही भगवान का भक्त में विशेष स्नेह हो जाता है तो भक्त के अवगुणों की ओर भगवान का ख्याल जाता ही नहीं है। किंतु ये मेरा ही है ऐसा भाव रहता है। भगवत्प्रेम में भाव की मुख्यता रहती है।
कौटुम्बिक स्नेह में मोह की मुख्यता एवं अंधकार छाया रहता है जबकि भगवत्प्रेम में आत्मीयता की मुख्यता एवं प्रकाश रहता है।