साधकों के लिए छल-कपट का विचार भी पाप है

मन कैसे लगे?

१) मान अपमान न लगे।

२) अच्छा -अच्छा भोजन छोड़कर, रूखा भोजन करो। दोनों समय कुछ भूखे रहो। सबके दुख सुख में सरीक रहो। बेइमान का अन्न न खाओ। बेखता कसूर कोई गाली दे मारे तुम रंज न करो चुप रहो। शुद्ध कमाई करो। भजन खुल जावेगा।

जो लोग ईश्वर भक्ति के अपने प्रयासों को उच्च स्तर पर ले जाना चाहते हैं, ईश्वर को अपने समीप पाना चाहते हैं, उन्हें किसी भी तरह के अहंकार का शमन करना होता है। कोई बेख़ता गाली दे, रंज करे, तब भी चुप रहना सीखना होगा। जैसे महाराज जी कहते हैं अपने आप को सबसे नीचे मानना होगा। भोजन में रुखा -सूखा खाना होता है और जैसे महाराज जी कहते हैं दोनों समय थोड़ा भूखा रहना होगा। ऐसे साधकों के लिए छल -कपट का तो विचार भी पाप है। ये सबके लिए सरल नहीं है परन्तु जिन्हें उस सर्वशक्तिशाली परमात्मा की भक्ति करने की तृष्णा है, उनके लिए महाराज जी का ऐसा मार्गदर्शन है।

महाराज जी का ये उपदेश कहीं ना कहीं, उनके लिए भी है जो सामान्य भक्त है, गृहस्थ हैं पर प्रयत्नों के बावजूद, उनका भक्ति में मन लगाना थोड़ा कठिन हो रहा है। भजन- कीर्तन- सत्संग करते समय उनके विचार बहुत जल्दी और बहुत अधिक, इधर- उधर की बातों में चले जाते हैं। पर फिर भी ईश्वर भक्ति में अपना लगाने की उनमें इच्छा शक्ति है। इसीलिए महाराज जी यहाँ पर उनका भी मार्गदर्शन कर रहे हैं। अब भक्ति में मन लगाने के लिए यदि सरल शब्दों में कहने का प्रयत्न किया जाये, तो कहीं ना कहीं हमें अपने आप को ज्येष्ठ और श्रेष्ठ मानने और विशेषकर मनवाने से ऊपर उठना होगा। इसको ऐसे भी कह सकते हैं हमें सबके साथ विनम्र बनना होगा।

अपने और परायों के भी दुःख -सुख में निस्वार्थ भाव से, यथासंभव साथ देना होगा और यदि कोई हमें उकसाता है, तीखी टिप्पणी करता है तो उसे नज़रअंदाज़, उपेक्षा करने का प्रयत्न करना होगा फिर खाने - पीने के लालच से, मोह से ऊपर उठना होगा। इसको ऐसे भी कह सकते हैं भोजन में जो प्राप्त है वो पर्याप्त है के सिद्धांत को कहीं ना कहीं अपनाना होगा। किसी भी प्रकार का मोह हमें भक्ति के मार्ग से भटकाने का सामर्थ रखता है और दूसरों के साथ छल -कपट, बेईमानी, धोखे से पैसा कमाना, धन -संपत्ति संचित करना - ऐसे बुरे कर्मों से बचना होगा। ऐसे धन से प्राप्त भोजन करने वालों को पाप लगता है। भक्ति में मन लगना भी संभव नहीं है।

अब कुछ लोगों को ये करना कठिन लगे और कुछ लोग प्रयत्न करना चाहें - जीवन में सबकी अपनी अपनी प्राथमिकताएं होती हैं। महाराज जी कहते हैं की ये थोड़े से गुण अपनाने से हमारे भजन -कीर्तन का, भक्ति का हमें असर दिखना प्रारम्भ हो सकता है। जीवन में सुख और शांति भी संभव है।

महाराज जी सबका भला करें।

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