नए रूप के कोरोना पर अब जीत की तैयारी
दुनिया के तमाम देश एक बार फिर बड़े
खतरे की कगार पर है। उम्मीद थी कि साल गुजरते ही करोना का प्रकोप कम हो जाएगा। लेकिन तुरंत ऐसा दिख नहीं रहा है। यह खतरा कोई नया तो नहीं, लेकिन ज्यादा खतरनाक है। कोरोना ने दुनियाभर में काफी तबाही मचाई है। लॉकडाउन
के बाद धीरे धीरे जीवन सामान्य होना शुरू हुआ था। सबको अंदाजा था कि वैक्सीन सफल हो रही हैं तो जल्द
ही खतरा टल जाएगा और सबकुछ पटरी पर लौटेगा। नयी रिपोर्ट आने के बाद चिंता बढ़ गई है। क्रिसमस की तैयारियों के बीच ब्रिटेन में कोरोना
वायरस का नया स्ट्रेन आसान भाषा में कहें तो वैरिएंट (नया रूप) सामने आया है, जो बेहद
खतरनाक है। इसने ब्रिटेन खासकर लंदन में तहलका
मचा दिया है। जिसको देखते हुवे इमरजेंसी लॉकडाउन
लागू करना पड़ा है। आसपास के कुछ और देश लॉकडाउन पर विचार कर रहे हैं। अच्छी बात ये है की भारत में अभी लन्दन जैसा हाल
नहीं है। सरकार की तत्परता और उचित देखभाल
से खुद लोगों ने भी अपनी प्रतिरोधक क्षमता को पहले से बेहतर किया है।
एक्सपर्ट्स की मानें तो किसी भी वायरस
में लगातार म्यूटेशन होता रहता है। ज्यादातर
वेरिएंट खुद ही म्यूटेट होने के बाद मर जाते हैं, लेकिन कभी-कभी वायरस म्यूटेट होने
के बाद पहले से कई गुना ज्यादा मजबूत और खतरनाक होकर सामने आता है। ये प्रक्रिया इतनी जल्दी होती है कि वैज्ञानिकों
को भी समझने और रिसर्च करने में समय लगता है और तब तक वायरस एक बड़ी आबादी को अपनी
चपेट में ले चुका होता है। जैसा कि ब्रिटेन
समेत कई देशों में दिख रहा है। भारत में घनी आबादी वाले इलाकों में अगर ये वायरस फैला
तो बड़ा नुकसान हो सकता है। इसलिए स्वास्थ्य
मंत्रालय ने सम्बंधित विभागों से सजग रहने को बोल दिया है। पहले से अधिक मुस्तैदी की बात कही जा रही है। लेकिन मौजूदा हालात में खुद हमें भी और सजग रहने
की जरूरत है। हमें इस सोच से बाहर निकलना होगा कि हमने मास्क नहीं लगाया तो हमें कुछ
नहीं होगा या हाथ नहीं ठीक से साफ़ किया तो हमें कुछ नहीं होगा। ग्रामीण इलाकों में ही नहीं शहरों में भी लापरवाही बराबर दिख जाती है। कई ऐसे
लोग दिख जाते हैं जो मास्क लगाते तो हैं, लेकिन बात करते समय नीचे कर देते हैं। ऐसी सोच और लापरवाही सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि
दूसरों के लिए भी चिंता की बात है। हमें अपना
ख्याल नहीं तो सामने वाले के बारे में सोचना चाहिए।
ऐसे समय में जब ज्यादातर अस्पताल कोविड 19 के मरीजों
की जांच में व्यस्त है ऐसे में कोशिश यही होनी चाहिए की अस्पतालों के कम चक्कर लगे। सरकारी अस्पतालों में आज पहले से कही ज्यादा काम
है। स्टाफ कम होने से कही ज्यादा दबाव कोविड
मरीजों का है। हमारे देश में 70 फीसदी से ज्यादा
अस्पताल प्राइवेट है। यानि कुल बेड़ का 2/5 निजी अस्पतालों के पास है। 80 फीसदी बाहरी मरीज इन्ही प्राइवेट अस्पतालों
पर निर्भर है। जिनमें 46 फीसदी वो मरीज हैं
जो भर्ती वाले है। जबकि 40 फीसदी डिस्पेंसरी ही सरकारी है। फिर भी आबादी के लिहाज से कई इलाकों में सरकारी अस्पताल या डिस्पेंसरी कम
या दूर हैं। जो है भी वहां स्टाफ की कमी है। हांलाकि भारत में हर साल 12 हजार मेडिकल ग्रेजुएट
तैयार होते हैं फिर भी जरुरत के हिसाब से कम हैं।
इसकी बड़ी वजह नए डॉक्टरों का प्राइवेट अस्पतालों या विदेश जाना है। इस लाइन को लिखे जाते समय दुनिया में कोरोना से
संक्रमित लोगों की कुल संख्या 77,172,237 हो गई है। जबकि इस वायरस से अब तक 1,699,644 लोगों की मौत हो चुकी
है। दुनियाभर में कोरोना वायरस से संक्रमित
54,089,577 लोग ठीक हो चुके हैं। अमेरिका,
भारत और ब्राजील में कोरोना वायरस के संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले आए हैं। अमेरिका और भारत में संक्रमण के कुल मामले एक करोड़
से ज्यादा हो गए हैं।
ऐसा नहीं है की कोरोना के प्रकोप से
निजात नहीं मिलेगा । लेकिन जिस तेजी से दुनिया
के अलग अलग हिस्सों में इसके अलग अलग रूप सामने आ रहे है इससे चुनौती जरूर बढ़ गई है।
खुद चीन
के वुहान अस्पताल में काम करने वाले 42 वर्षीय डॉक्टर यी फेन लोगों का इलाज
करने के दौरान खुद भी संक्रमित हो गए थे और अप्रत्याशित तरीके से उनकी त्वचा का रंग
काला पड़ गया था। फिलहाल वे स्वस्थ हैं। चीन
के दो डॉक्टर्स में कोरोना संक्रमित होने के बाद अजीब लक्षण देखे गए थे। न सिर्फ इनके लिवर बुरी तरह खराब हो गए थे बल्कि
त्वचा का रंग भी काला पड़ गया था। इन डॉक्टर्स
में से एक डॉक्टर हू वेइफेंग की मौत हो गयी थी।
हालांकि दूसरे डॉक्टर यी फेन अब ठीक हो गए हैं और उनकी त्वचा का रंग भी अब पहले
की ही तरह सामान्य होने लगा है।
कोरोना के संकट काल में डॉक्टरों की भूमिका और ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई है। कोरोना की शुरूआत के साथ ही इसको लेकर डर और दहशत का माहौल भी बन रहा था। नया वायरस होने के चलते इसके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी। ऐसे में मरीज के संपर्क में आना खासा खतरनाक भी साबित हो सकता था, लेकिन डॉक्टरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना न सिर्फ मरीजों का इलाज किया, बल्कि उन्हें घर से लाने और छोड़ने का काम भी कर रहे हैं। डॉक्टर 18-18 घंटे ड्यूटी कर रहे हैं। कई डॉक्टर तो अपने परिवार को संक्रमण से बचाने के लिए घर तक नहीं जा रहे हैं। यह उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि कई राज्यों में कोरोना से मरने वालों की संख्या बेहद कम है। सकारात्मक सोच और सावधानी का ही नतीजा है कि भारत में कोरोना संक्रमण के बाद ठीक होने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
(डॉ नरेंद्र तिवारी)