पाप न करना ही बड़ा पुण्य है


जीव का प्रत्येक व्यवहार और प्रवृत्ति ठाकुरजी देखते हैं। कोई भी व्यवहार ऐसा नहीं है जो उनकी दृष्टि में न हो। पाप न करना ही बड़ा पुण्य है। जीव जो कुछ बोलता है, उसे भगवान सुनते हैं और जो कुछ भी देखता है उसे भगवान भी देखते है।
 
कोई भी स्थान ऐसा नहीं है जहाँ प्रभु की सत्ता विराजमान न हो। मनुष्य का शारीरिक पाप तो समाज भी देख सकता है, किंतु उसका मानसिक पाप केवल प्रभु ही देख सकते हैं। मानसिक पाप से भी बचो। किसी का भी अहित चिंतन न हो।

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