जो गजल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गयी, उसको बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

अप्पूर्वा सेवा समिति के संरक्षक व अमर जनवादी कवि राम नाथ सिंह जिनको दुनिया अदम गोंडवी के नाम से जानती है कि पुण्यतिथि पर नमन किया गया  संजय मल्होत्रा हमनवा ने अपूर्वा व ख़ुद से जुड़ी उनकी यादों को बताया और कहा "जो गजल माशूक के जलवों से वाक़िफ़ हो गयी, उसको बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो" जैसी कालजयी रचनाओं और सरल स्वभाव से अदम जी सदा याद आयेंगे

विकास खंड परसपुर के ग्राम आंटा, गजराज पुरवा गांव में 22 अक्तूबर 1947 को एक किसान परिवार में जन्मे रामनाथ सिंह अपनी कविताओं व रचनाओं से अदम के नाम से मशहूर हो गए। आगे चल कर उन्हें गोंडवी की पदवी प्राप्त हुई और वें अदम गोंडवी बन गए। उनकी ठेठ गंवई अंदाज की रचनाएं उनको कवि सम्मेलनों व मुशायरों में सबसे अलग बनाती थी। उन्होंने महंगाई के बारे में लिखा है। ‘चीनी नहीं है घर में लो मेहमान आ गए, महंगाई की भट्टी पे शराफत उबाल दो’। 18 दिसंबर 2011 को अदम गोंडवी हमेशा के लिये इस दुनिया से रुखसत हो गए। आज वे हमारे बीच तो नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा हमें प्रेरणा देती रहेंगी। वे लोगों के दिलो दिमाग पर अपनी जन आकांक्षा की स्मृतियां छोड़ गए। उनकी रचनाएं आज भी समाज को कुरेदती रहेंगी और समाज के लोगों को एक नई दिशा देती रहेंगी।

"जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ खुलासा देखिए, आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये, जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज, उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए।’ अपनी लेखनी से बेरोजगारी, भुखमरी व भ्रष्टाचार पर करारा चोट करने वाले ठेठ गंवई अंदाज के हिंदी साहित्य व गजल विधा के प्रसिद्ध जन कवि व शायर रामनाथ सिंह ‘अदम’ ने अपना सारा जीवन दीन दुखियों, गरीबों, मजलूमों के नाम समर्पित कर साहित्य जगत में जो एक लंबी लकीर खींची है उसकी भरपाई आज शायद ही कोई कर सके। आज अदम हमारे बीच तो नहीं हैं। लेकिन उन्होंने अपनी कालजयी रचनाओं से लोगों के दिलों में आज भी जिंदा रह कर वें अमर हो गए।

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