खुद की प्रशंसा सुनने के साथ दूसरों की प्रशंसा करनी भी चाहिए

खुद की प्रशंसा सुनने के साथ-साथ दूसरों की प्रशंसा करने का अवसर कभी मत चूको। स्वयं की ज्यादा प्रशंसा सुनने से अहम् पैदा होता है और ज्यादा सम्मान प्रगति को अवरुद्ध भी कर देता है। भगवान् श्री कृष्ण का यही गुण था कि उन्हें अच्छाई शत्रु में भी नजर आती थी तो उसकी प्रशंसा करने से नहीं चूकते थे।
 
कर्ण की दानशीलता और शूरता की कई बार उन्होंने समाज के सामने सराहना की। दूसरों की प्रशंसा से आपको उनका प्यार और सम्मान सहज में ही प्राप्त हो जाता है। राजा बलि की प्रशंसा करके भगवान् वामन ने तो तीन लोक सहज में प्राप्त कर लिए थे। तो क्या आप ढाई अक्षर का प्रेम प्राप्त नहीं कर सकते हो ?

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

!!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण को समझना है तो जरूर पढ़ें