सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार

गंगासागर (सागर द्वीप या गंगा-सागर-संगम भी कहते हैं) बंगाल की खाड़ी के कॉण्टीनेण्टल शैल्फ में कोलकाता से १५० कि॰मी॰ (८०मील) दक्षिण में एक द्वीप है। यह भारत के अधिकार क्षेत्र में आता है और पश्चिम बंगाल सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है। इस द्वीप का कुल क्षेत्रफल ३०० वर्ग कि॰मी॰ है। इसमें ४३ गांव हैं, जिनकी जनसंख्या १,६०,००० है।

यहीं गंगा नदी का सागर से संगम माना जाता है। हिन्दुओं का प्रसिद्ध यह धार्मिक स्थल गंगासागर, बंगाल की खाड़ी में स्थित एक द्वीप है और सुंदरबन डेल्टा का हिस्सा है पर यह अपनी भौगोलिक विशेषता से ज़्यादा अपनी धार्मिक विशेषता के लिए जाना जाता है। हर साल गंगासागर मेला इस सागर द्वीप के छोर पर मनाया जाता है जहाँ से गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। इसी प्रयाग को गंगासागर का नाम दिया गया है।

इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां मैन्ग्रोव की दलदल, जलमार्ग तथा छोटी छोटी नदियां, नहरें हीं। इस द्वीप पर ही प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं का तांता लगता है, जो गंगा नदी के सागर से संगम पर नदी में स्नान करने के इच्छुक होते हैं। यहाँ एक मंदिर भी है जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है। ये लोग कपिल मुनि के मंदिर में पूजा अर्चना भी करते हैं। पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के ६० हज़ार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी।

उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। कहा जाता है कि एक बार गंगा सागर में डुबकी लगाने पर १० अश्वमेध यज्ञ और एक हज़ार गाय दान करने के समान फल मिलता है। जहां गंगा-सागर का मेला लगता है, वहां से कुछ दूरी उत्तर वामनखल स्थान में एक प्राचीन मंदिर है। उसके पास चंदनपीड़िवन में एक जीर्ण मंदिर है और बुड़बुड़ीर तट पर विशालाक्षी का मंदिर है।

कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट का यहां एक पायलट स्टेशन तथा एक प्रकाशदीप भी है। पश्चिम बंगाल सरकार सागर द्वीप में एक गहरे पानी के बंदरगाह निर्माण की योजना बना रही है। गंगासागर तीर्थ एवं मेला महाकुंभ के बाद मनुष्यों का दूसरा सबसे बड़ा मेला है। यह मेला वर्ष में एक बार लगता है।

यह द्वीप के दक्षिणतम छोर पर गंगा डेल्टा में गंगा के बंगाल की खाड़ी में पूर्ण विलय (संगम) के बिंदु पर लगता है। बहुत पहले इस ही स्थानपर गंगा जी की धारा सागर में मिलती थी, किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की एक बहुत छोटी सी धारा सागर से मिलती है। यह मेला पांच दिन चलता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन ही दिनों का होता है।

 

यहां गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है, बस एक मील का स्थान निश्चित है, जिसे मेले की तिथि से कुछ दिन पूर्व ही संवारा जाता है। यहां स्थित कपिल मुनि का मंदिर सागर बहा ले गया, जिसकी मूर्ति अब कोलकाता में है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व पुरोहितों को पूजा अर्चना हेतु मिलती है। अब यहां एक अस्थायी मंदिर ही बना है। इस स्थान पर कुछ भाग चार वर्षों में एक बार ही बाहर आता है, शेष तीन वर्ष जलमग्न रहता है। इस कारण ही कह जाता है: "बाकी तीरथ चार बार, गंगा-सागर एक बार" 

उदाहरण के तौर पर वर्ष २००७ में मकर संक्रांति के अवसर पर लगभग ३ लाख लोगों ने यहां स्नान किया। यह संख्या अगले वर्ष घटकर २ लाख रह गई। ऐसा केवल कुंभ मेले के कारण हुआ था, शेष वर्ष पर्यन्त ५० हजार तीर्थयात्रियों ने स्नान किए। २००८ में पांच लाख श्रद्धालुओं ने सागर द्वीप में स्नान किया। यहां आने वाले श्रद्धालुओं से १० भारतीय रुपए कर लिया जाता है।

पूरी कथा यह है कि हिन्दू ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु धरती पर कपिल मुनि के रूप में आए थे। उन्होंने इस स्थान पर अपना आश्रम बनाया और तपस्या में लीन हो गए।इसी दौरान पृथ्वीलोक पर राजा सागर अपने कर्मों की वजह से काफी पुण्य कमा रहे थे जिसके कारण देवताओं के राजा इंद्र को अपनी गद्दी हिलती दिख रही थी। इंद्र ने एक चाल चली और राजा सागर का बलि में चढ़ाए जाने वाला अश्व चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम के पास छोड़ दिया। राजा सागर ने अपने ६०००० पुत्रों को उस अश्व को ढूँढ लाने के लिए भेजा। जब राजा सागर के पुत्रों को अश्व कपिल मुनि के आश्रम के पास मिला, उन्होंने चोरी के लिए कपिल मुनि पर आरोप लगाया।

इंद्र की चाल से अनजान कपिल मुनि इस झूठे आरोप से क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा सागर के सभी पुत्रों को भस्म कर दिया और उन्हें पाताल लोक में भेज दिया। जब कपिल मुनि को असल बात पता चली तो वे अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकते थे पर उन्होंने राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने का उपाय बताया। अगर माता पार्वती धरती पर जल के रूप में उतर कर राजा सागर के पुत्रों के अस्थियों को स्पर्श कर लेती हैं तो हिन्दू मान्यताओं के अनुसार उनकी अंतिम क्रिया पूरी हो जाती और वो मोक्ष प्राप्त कर स्वर्ग लोक को चले जाते।

राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए उनके सम्बन्धी राजा भगीरथ ने घोर तपस्या की ताकि माता पार्वती धरती पर आ जाएँ।और अंततः पार्वती देवी गंगा के रूप में धरती पर उतरीं और उनके स्पर्श से राजा सागर के पुत्रों को मोक्षप्राप्ति हुई। गंगा के धरती पर आने की तिथि हिन्दू पंचांग के अनुसार उत्तरायण या मकर संक्रांति पर होती है।इसीलिए लाखों लोग इस दिन गंगासागर में स्नान करते हैं ताकि वे स्वर्ग प्राप्त कर सकें।

जनवरी में यहाँ सबसे ज़्यादा पर्यटक और तीर्थ यात्री आते हैं। इस समय यहाँ का मौसम भी अच्छा होता है। इसके अलावा आप ठंड के मौसम में कभी भी जाएँ तो यह बढ़िया रहेगा। प्रायः यात्री कोलकाता से नाव से गंगा सागर जाते हैं। कोलकाता से ३८ मील दक्षिण में डायमंड हार्बर स्टेशन है। वहां से नावें और जहाज भी गंगा सागर जाते हैं। कोलकता से गंगासागरद्वीप लगभग ९० मील दक्षिण में है। कोलकाता में आपको किसी भी स्थान से काकद्वीप जाने के लिए बसें और टैक्सी मिल जाएँगी। काकद्वीप से आपको गंगासागर के लिए आसानी से फ़ेरी मिल जाएँगी। निकटतम एयरपोर्ट: कोलकाता का सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा गंगासागर से निकटतम एयरपोर्ट है। निकटम रेलवे स्टेशन: प्रमुख रेलवे स्टेशनों में सियालदाह यहाँ से सबसे क़रीब है।

-निखिलेश मिश्रा

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