सत्संग से जीवन उजागर होता है और कुसंग से भ्रष्ट
सङ्ग का रंग मन को लगता है। बालक जन्म के समय निर्मल होता है लेकिन बड़े होने पर जैसा संग मिलता है, वैसा ही उसका जीवन बनने बिगड़ने लगता है।
आम के चारों ओर बबूल लगाओगे तो आम नहीं मिलेंगे विलासी का संग होगा तो मनुष्य विलासी हो जाएगा और विरक्त का संग होगा तो विरक्त हो जाएगा।
सत्संग से जीवन उजागर होता है और कुसंग से भ्रष्ट होता है। नित्य इच्छा करो कि शंकराचार्य सा ज्ञान, महाप्रभु जैसी भक्ति और शुकदेव जी जैसा वैराग्य हम सबको भी प्राप्त हो।