कृषि कानून - विरोध एवं उपचार
सरकार सकारात्मक उद्देश्य के साथ किसानों के हित के लिए तीन नए कानून अस्तित्व में लाई है किन्तु कतिपय बिंदुओं को लेकर किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया है। कानून होते है तो उसके दुरुपयोग व सम्भावनाओ के द्वार भी उपस्थित होते हैं। इस संदर्भ में शोशल मीडिया पर चंहु ओर दो तबके दिख रहे है। एक है किसानों के समर्थन में और दूसरा है विपक्ष में। मुझे आभास हुआ कि इनमे से अधिकतर भाई लोग विरोध या समर्थन तो कर रहे है किंतु उन्हें इसके प्राविधान और दुरुपयोग की सम्भवनाओ के बारे में पर्याप्त जानकारी नही है।
आज बात करते है उन सम्भावनाओ की, जिनपर भविष्य के परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है।
रेडीमेड आटा देने वाली कम्पनी को गेंहू चाहिए। इसके लिए वो कम्पनी गांव जाकर किसान से एग्रीमेंट करेगी और कहेगी चार माह बाद जब तुम फसल काटोगे तब 2200/- रुपया प्रति कुंतल की दरसे तुम्हारे पूरे खेत का गेंहू खरीदा जाएगा। अनाज का दाम एडवांस में तय हो गया अच्छी बात है, अब चाहे चार माह बाद गेंहू का दाम कितना भी कम क्यों ना हो जाये पर किसान को 2200/- रुपया प्रति कुंतल के हिसाब से ही भुगतान कम्पनी करेगी। इस काम के लिए किसान और कम्पनी के बीच अनुबंध यानी कंट्रेक्ट हो गया। ये तो और भी अच्छी बात है।
जबतक सरकारी मंडी और एमएसपी का दाम 1900/- रुपया जिंदा है तब तक ऊपर वाली व्यवस्था ठीक है, किन्तु किसानों को डर है कि अगर एमएसपी बन्द हुआ याफिर सरकारी मंडी खत्म हुई तो यही कम्पनी किसान से अनुबंध 2200/- रुपया प्रति कुंतल पर नही बल्कि 1400/- रुपया प्रति कुंतल पर करना शुरू कर सकती है मतलब तब यही फायदा उठाने वाला किसान नुकसान उठाना शुरू कर देगा तथा कम्पनी ताबड़तोड़ मुनाफा बनाना शुरू कर देगी।
मेरी राय में इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को चाहिए कि वे एमएसपी को संवैधानिक/कानूनी दर्जा देते हुए निजी कम्पनियो द्वारा किये जा रहे अनुबंध के लिए भी उसे न्यूनतम मूल्य के रूप में स्थापित करे ताकि भविष्य में कोई भी कम्पनी एमएसपी से नीचे जाकर किसानों का शोषण ना कर सके।
अब बात आती है भविष्य में एमएसपी और सरकारी मंडिया बन्द होने या ना होने की, तो इस सम्बंध में कहना उचित होगा कि जब कंट्रेक्ट फार्मिंग के जरिये किसान का अनाज कम्पनी खरीदेगी और किसान भी अपना अनाज अन्य राज्यो के दुकानदारों को सीधे बेंचना शुरू कर देगे तब एपीएमसी यानी सरकारी मंडी का वैसा हाल हो सकता है जैसा आज जिओ, बोडाफोन और एयरटेल के कारण बीएसएनएल का हुआ है।
अर्थात जब सरकारी मंडियों में खरीद फरोख्त ही खत्म हो जाएगी तब आगे जाकर धीरे धीरे एमएसपी और सरकारी मंडिया समाप्त कर दी जाएंगी क्योंकि तब इन्हें जबरन ढोने से सरकार को कोई लाभ नही होगा, बल्कि नुकसान ही होगा। तब निजी कम्पनियो द्वारा किसानों का शोषण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
जब सरकारी मंडिया और एमएसपी नही होगा तब निजी कम्पनी और किसान के बीच मे मोल तोल के अनुबंध में सरकार भी हस्तक्षेप नही कर पाएगी।
वर्ष 2016 से जिओ, बोडाफोन और एयरटेल ने अपना इंफ्रास्ट्रुचर डेवेलोप कर के सस्ते प्लान बल्कि फ्री प्लान लांच कर के भारत की 30% मार्केट कब्जा कर ली, उधर बीएसएनएल के संसाधन अपडेट नही किये गए। इसका परिणाम ये हुआ कि जल्द ही बीएसएनएल बन्द होने जा रही है यानी बन्दी की कगार पर खड़ी है जबकि निजी सर्विस प्रोवाइडर्स आज अपने शेयर्स और टर्न ओवर पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ा चुके है।
एक समस्या और है। उसका नाम है जमाखोरी की असीमित शक्ति का मिलना। अगर इसे भी नियंत्रित ना किया गया तो जमाखोरों द्वारा बाजार में खाद्य की नकली कमी पैदा की जाएगी और दाम बढ़ने पर जमाखोर तो अपने अपने गोदाम खाली कर के मुनाफा बटोर लेंगे पर आम आदमी पेट भरने के लिए भी मंहगाई का ही मुंह देखेगा। तब शाक, भाजी, गल्ला राशन खरीद पाना भी आसान नही होगा।
-निखिलेश मिश्रा