कामना की पूर्ति होने पर लोभ बढ़ता है और न होने पर क्रोध
काम, क्रोध और लोभ ये तीनों नरक के द्वार हैं। वास्तव में एक काम के ही ये तीन रूप हैं। कामना की पूर्ति होने पर लोभ बढ़ता है और न होने पर क्रोध बढ़ता है।
ये तीनों सांसारिक वस्तुओं, व्यक्तियों आदि को महत्व देने से पैदा होते हैं। काम अर्थात कामना की दो तरह की क्रियाएँ होती हैं-इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट की निवृत्ति।
इष्ट की प्राप्ति भी दो तरह की होती है-संग्रह करना और सुख भोगना। संग्रह करने की इच्छा का नाम लोभ है और सुखभोग की इच्छा का नाम काम है।