शुद्ध व्यवहार ही भक्ति है


 

प्रभु सर्वव्यापी है, सर्वत्र हैं। ईश्वर जड़ और चेतन दोनों में है। नृसिंह भगवान आकाश में नहीं, स्तंभ में से प्रकट हुए थे। मात्र चेतन में ही नहीं जड़ में भी ईश्वर का दर्शन करो।

ऐसा नहीं मानना चाहिए कि भक्ति केवल मंदिर में ही की जा सकती है। भक्ति हर जगह की जा सकती है। ईश्वर से अविभक्त रहकर किया गया व्यवहार ही भक्ति है। अतः ईश्वर से कभी भी अलग मत होओ।

शुद्ध व्यवहार ही भक्ति है। जिसके व्यवहार में दंभ है, अभिमान है, उसका व्यवहार अशुद्ध है। जिसका व्यवहार शुद्ध नहीं है वह भक्ति के आनंद को पा ही नहीं सकता।

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