यश प्राप्ति के लिए भी भंडारा करते हैं कुछ लोग


महाराज जी भक्तों को भंडारे के बारे में उपदेश दे रहे हैं कि:-
 
लोग बड़े-बड़े भन्डारा करते हैं, और जो सुखी हैं उनको निमंत्रित कर भोजन कराते हैं। उसके द्वारा अपना राजनीतिक उद्देश्य सिद्ध करते हैं। परन्तु गरीबों और बच्चों को खिचड़ी खिलाने में पुण्य है। बड़े-बड़े भन्डारे में बड़ा खर्चा भी होता है। कोई कोई दिखावे के लिये भी ऐसा करते हैं। ऐसा भन्डारा सबके लिये सुलभ भी नहीं होता।
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भंडारा कराना अच्छी बात है परन्तु हमारे समाज में बहुत से लोगों का भंडारा कराने का उद्देश्य उससे राजनितिक, सामाजिक लाभ या अपना कोई और काम निकालना होता है। कुछ लोग यश प्राप्ति के लिए भी भंडारा करते हैं। और इस तरह के भंडारे में जो लोग बुलाये जाते हैं वे प्रायः समृद्ध होते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं की ऐसे भंडारे में दिखावा भी बहुत होता है। अब ऐसे भंडारे का लाभ मिलेगा या नहीं और यदि मिलेगा तो उसकी क्या अवधि होगी, ये कहना कठिन है लेकिन महाराज जी यहाँ पर ये तो स्पष्ट समझा रहे हैं कि ऐसे भंडारे को आयजित कराने वाला व्यक्ति इस कर्म से पुण्य तो नहीं ही कमाएगा।
 
महाराज जी आगे समझाते हैं कि भंडारे से पुण्य कमाने की इच्छा रखने वाले लोगों को भंडारा ऐसा करना चाहिए की जिसका लाभ गरीबों को मिले, जिनके लिए प्रतिदिन भोजन का इंतज़ाम कर पाना कठिन हो। निस्वार्थ भाव से आयोजित भंडारे में किसी भी वंचित का आना आसान हो, सुलभ हो- जाति और धर्म के बारे में तो सोचना भी नहीं है या ऐसे भी कर सकते हैं कि भंडारे का भोजन बनवा के उसका वितरण ज़रूरतमंद लोगों में कर सकते हों जैसे सरकारी अस्पताल के बाहर, रेल की पटरी के पास या स्टेशन के पास, भवन निर्माण के काम में लगे मज़दूर उनके परिवार जहाँ रहते हों या जहाँ कहीं भी वास्तव में वंचित लोगों का बसेरा हो। थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी लेकिन ऐसे कर्म करने में निसंदेह आनंद आएगा, शांति मिलेगी और पुण्य तो मिलेगा ही।
 
जो लोग किसी कारणवश भोजन बनवाने में असमर्थ हों वे महाराज जी के उपदेश अनुसार खिचड़ी बंटवा सकते हैं। (इसका विवरण हम लोग इस पटल पर करते रहते हैं)। जैसा भक्तों को ज्ञात होगा, महाराज जी के कुछ भक्त सामूहिक तौर पर कुछ नगरों में ऐसा भोजन/खिचड़ी का वितरण का बहुत भला काम समय-समय पर करते रहते हैं। वैसे ऐसे शुभ कर्म निजी तौर पर भी किये जा सकते हैं- किसी से बिना अपेक्षा या तुलना के:-) और इस सन्दर्भ में ये बहुत ही आवश्यक है कि भंडारे के लिए जो धन निवेश किया जाए वो पूर्णतः ईमानदारी से कमाया गया हो नहीं तो महाराज जी के उपदेश अनुसार ऐसे कर्मों का फल विपरीत हो सकता है। बहुत पाप लगता है जिसका फल पीड़ादायक हो सकता है।
 
भंडारे कराने के कर्म के बारे में प्रचार करने/ फोटो खिंचवाने से उसका पुण्य नहीं मिलता इसलिए भी इससे बचना चाहिए। परस्वार्थ की श्रेणी में किसी भूखे को खाना खिलाना सबसे ऊपर माना गया है। महाराज जी सबका भला करें।

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