भारत छोडो आन्दोलन- महात्मा गांधी भाषण


सामान्यतः महात्मा गांधी को औपनिवेशिक सत्ता के विरुद्ध के विरुद्ध संघर्ष करने वाले योद्धा के रूप में देखा जाता है, किंतु यदि गहराई से देखें तो गांधी ने न केवल स्वतंत्रता की लड़ाई बल्कि उन्होंने हर समय भारतीय सभ्यता को श्रेष्ठता दिलाने का प्रयास भी किया और विश्व व्यवस्था के समक्ष भारतीय सभ्यता का प्रतिनिधित्व किया।

8 अगस्त 1942 को A.I.C.C. मुंबई में दिया गया महात्मा गांधी का भाषण सबसे बेहतरीन भाषणों में से एक है। भारत छोडो आन्दोलन की शाम महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवलिया टैंक में एक प्रेरणादायी भाषण दिया

प्रस्ताव पर चर्चा शुरू करने से पहले मै आप सभी के सामने एक या दो बात रखना चाहूँगा, मै दो बातो को साफ़-साफ़ समझना चाहता हूँ और उन दो बातो को मै हम सभी के लिये महत्वपूर्ण भी मानता हूँ। मै चाहता हूँ की आप सब भी उन दो बातो को मेरे नजरिये से ही देखे, क्योकि यदि आपने उन दो बातो को अपना लिया तो आप हमेशा आनंदित रहोंगे।

यह एक महान जवाबदारी है। कयी लोग मुझसे यह पूछते है की क्या मै वही इंसान हूँ जो मै 1920 में हुआ करता था, और क्या मुझमे कोई बदलाव आया है। ऐसा प्रश्न पूछने के लिये आप बिल्कुल सही हो। मै जल्द ही आपको इस बात का आश्वासन दिलाऊंगा की मै वही मोहनदास गांधी हूँ जैसा मै 1920 में था। मैंने अपने आत्मसम्मान को नही बदला है।

आज भी मै अहिंसा से उतनी ही नफरत करता हूँ जितनी उस समय करता था। बल्कि मेरा बल तेज़ी से विकसित भी हो रहा है। मेरे वर्तमान प्रस्ताव और पहले के लेख और स्वभाव में कोई विरोधाभास नही है। वर्तमान जैसे मौके हर किसी की जिंदगी में नही आते लेकिन कभी-कभी एखाद की जिंदगी में जरुर आते है। मै चाहता की आप सभी इस बात को जानो की अहिंसा से ज्यादा शुद्ध और कुछ नही है, इस बात को मै आज कह भी रहा हूँ और अहिंसा के मार्ग पर चल भी रहा हूँ।

हमारी कार्यकारी समिति का बनाया हुआ प्रस्ताव भी अहिंसा पर ही आधारित है, और हमारे आन्दोलन के सभी तत्व भी अहिंसा पर ही आधारित होंगे। यदि आपमें से किसी को भी अहिंसा पर भरोसा नही है तो कृपया करके वो इस प्रस्ताव के लिये वोट ना करे। मै आज आपको अपना बात साफ़-साफ़ बताना चाहता हूँ। भगवान ने मुझे अहिंसा के रूप में एक मूल्यवान हथियार दिया है। मै और मेरी अहिंसा ही आज हमारा रास्ता है।

वर्तमान समय में जहाँ धरती हिंसा की आग में झुलस चुकी है और वही लोग मुक्ति के लिये रो रहे है, मै भी भगवान द्वारा दिये गए ज्ञान का उपयोग करने में असफल रहा हूँ, भगवान मुझे कभी माफ़ नही करेगा और मै उनके द्वारा दिये गए इस उपहार को जल्दी समझ नही पाया। लेकिन अब मुझे अहिंसा के मार्ग पर चलना ही होंगा। अब मुझे डरने की बजाये आगे देखकर बढ़ना होंगा।

हमारी यात्रा ताकत पाने के लिये नहीं बल्कि भारत की आज़ादी के लिये अहिंसात्मक लढाई के लिये है। हिंसात्मक यात्रा में तानाशाही की संभावनाये ज्यादा होती है जबकि अहिंसा में तानाशाही के लिये कोई जगह ही नही है। एक अहिंसात्मक सैनिक खुद के लिये कोई लोभ नही करता, वह केवल देश की आज़ादी के लिये ही लढता है। कांग्रेस इस बात को लेकर बेफिक्र है की आज़ादी के बाद कौन शासन करेंगा।

आज़ादी के बाद जो भी ताकत आएँगी उसका संबंध भारत की जनता से होंगा और भारत की जनता ही ये निश्चित करेंगी की उन्ही ये देश किसे सौपना है। हो सकता है की भारत की जनता अपने देश को पेरिस के हाथो सौपे। कांग्रेस सभी समुदायों को एक करना चाहता है नाकि उनमे फुट डालकर विभाजन करना चाहता है। आज़ादी के बाद भारत की जनता अपनी इच्छानुसार किसे भी अपने देश की कमान सँभालने के लिये चुन सकती है। और चुनने के बाद भारत की जनता को भी उसके अनुरूप ही चलना होंगा।

मै जानता हूँ की अहिंसा परिपूर्ण नही है और ये भी जानता हूँ की हम अपने अहिंसा के विचारो से फ़िलहाल कोसो दूर है लेकिन अहिंसा में ही अंतिम असफलता नही है। मुझे पूरा विश्वास है, छोटे-छोटे काम करने से ही बड़े-बड़े कामो को अंजाम दिया जा सकता है। ये सब इसलिए होता है क्योकि हमारे संघर्षो को दखकर अंततः भगवान भी हमारी सहायता करने को तैयार हो जाते है।

मेरा इस बात पर भरोसा है की दुनिया के इतिहास में हमसे बढ़कर और किसी देश ने लोकतांत्रिक आज़ादी पाने के लिये संघर्ष किया होंगा। जब मै पेरिस में था तब मैंने कार्लाइल फ्रेंच प्रस्ताव पढ़ा था और पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी मुझे रशियन प्रस्ताव के बारे में थोडा बहुत बताया था। लेकिन मेरा इस बात पर पूरा विश्वास है की जब हिंसा का उपयोग कर आज़ादी के लिये संघर्ष किया जायेंगा तब लोग लोकतंत्र के महत्त्व को समझने में असफल होंगे।

जिस लोकतंत्र का मैंने विचार कर रखा है उस लोकतंत्र का निर्माण अहिंसा से होंगा, जहाँ हर किसी के पास समान आज़ादी और अधिकार होंगे। जहाँ हर कोई खुद का शिक्षक होंगा। और इसी लोकतंत्र के निर्माण के लिये आज मै आपको आमंत्रित करने आया हूँ। एक बार यदि आपने इस बात को समझ लिया तब आप हिन्दू और मुस्लिम के भेदभाव को भूल जाओंगे। तब आप एक भारतीय बनकर खुद का विचार करोंगे और आज़ादी के संघर्ष में साथ दोंगे।

अब प्रश्न ब्रिटिशो के प्रति आपके रवैये का है। मैंने देखा है की कुछ लोगो में ब्रिटिशो के प्रति नफरत का रवैया है। कुछ लोगो का कहना है की वे ब्रिटिशो के व्यवहार से चिढ चुके है। कुछ लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद और ब्रिटिश लोगो के बिच के अंतर को भूल चुके है। उन लोगो के लिये दोनों ही एक समान है।

उनकी यह घृणा जापानियों की आमंत्रित कर रही है। यह काफी खतरनाक होंगा। इसका मतलब वे एक गुलामी की दूसरी गुलामी से अदला बदली करेंगे। हमें इस भावना को अपने दिलोदिमाग से निकाल देना चाहिये। हमारा झगडा ब्रिटिश लोगो के साथ नही हैं बल्कि हमें उनके साम्राज्यवाद से लढना है। ब्रिटिश शासन को खत्म करने का मेरा प्रस्ताव गुस्से से पूरा नही होने वाला। यह किसी बड़े देश जैसे भारत के लिये कोई ख़ुशी वाली बात नही है की ब्रिटिश लोग जबरदस्ती हमसे धन वसूल रहे है।

हम हमारे महापुरुषों के बलिदानों को नही भूल सकते। मै जानता हूँ की ब्रिटिश सरकार हमसे हमारी आज़ादी नही छीन सकती, लेकिन इसके लिये हमें एकजुट होना होंगा। इसके लिये हमें खुदको घृणा से दूर रखना चाहिये। खुद के लिये बोलते हुए, मै कहना चाहूँगा की मैंने कभी घृणा का अनुभव नही किया। बल्कि मै समझता हूँ की मै ब्रिटिशो के सबसे गहरे मित्रो में से एक हूँ

आज उनके अविचलित होने का एक ही कारण है, मेरी गहरी दोस्ती। मेरे दृष्टिकोण से वे फ़िलहाल नरक की कगार पर बैठे हुए है और यह मेरा कर्तव्य होंगा की मै उन्हें आने वाले खतरे की चुनौती दूँ। इस समय जहाँ मै अपने जीवन के सबसे बड़े संघर्ष की शुरुवात कर रहा हूँ, मै नही चाहता की किसी के भी मनमे किसी के प्रति घृणा का निर्माण हो।

पश्चिमी सभ्यता के वर्चस्व वाले उस युग में गांधी ने भारतीय सभ्यता को श्रेष्ठ बताते हुए उसे संपूर्ण विश्व के लिये एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने गांधी के बारे में उचित ही लिखा है-
“एक देश में बांध संकुचित करो न इसको 
गांधी का कर्तव्य क्षेत्र, दिक् नहीं, काल है 
गांधी है कल्पना जगत के अगले युग की 
गांधी मानवता का अगला उद्विकास है

बापू को शत शत नमन।


-निखिलेश मिश्रा

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