जा बिधि राखैं राम - ता विधि रहिये

 


यह जीव और शरीर भगवान का है। इसलिये 'जा बिधि राखैं राम - ता विधि रहिये' के सिद्धान्त को मानने वाले:

कभी किसी प्रकार की चिन्ता नहीं करते।

भगवान ने अपनी प्रारब्ध के अनुसार जो दिया, उसी में सुख-सन्तोष मानते हैं।

जो तुम्हारा है, वह निश्चय रूप से प्राप्त होगा। इस विश्वास को हृदय में रख कर अपने कर्तव्य में आरूढ़ रहो।

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जिनके हृदय में महाराज जी का वास है, जिन्होंने अपने आप को महाराज जी के हाथों में छोड़ दिया है, जो उनके उपदेशों पर चलने की ईमानदारी से निरंतर कोशिश करते रहते हैं उनके लिए महाराज जी का ये उपदेश बहुत हिम्मत और प्रोत्साहन दे सकता है, विशेषकर तब, जब हम संकटों से घिरे हुए हों, जीवन में संघर्ष कर रहे हों। यदि महाराज जी के लिए हमारे भाव सच्चे हैं तो इस उपदेश को प्रायः पढ़ने से, याद करने से हमारे जीवन में कम से कम तनाव या चिंता होगी। हमारा कल्याण होगा। ये निश्चित है।

महाराज जी ने हमें कई बार याद दिलाया है की हमारी आत्मा (इस उपदेश में जीव) जो हम सब के भीतर वास करती है वो उस परम आत्मा का ही अंश है। हमारा शरीर भी वैसे है तो पांच तत्वों का बना हुआ लेकिन रचना उस परम आत्मा की ही है। उन्ही की अमानत भी है। तो आत्मा और शरीर, जिनसे इस संसार में हम हैं, हमारा अस्तित्व है- ये दोनों भगवान के ही हैं।

हमारा अपना तो केवल और केवल हमारे अपने कर्म ही हैं - जो कभी हम अच्छे तो कभी बुरे करते हैं। और फिर दोनों का फल, उस परम आत्मा की बनाई अद्वितीय, उत्कृष्ट और स्वचालित (unique, excellent and automatic) व्यवस्था के अंतर्गत हम सबको आगे - पीछे मिलता ही मिलता है -कब, कैसे, कितना, कितनी बार इत्यादि वो स्वयं तय करता है। पर हमारे अधिकतर कर्मों का फल वर्तमान जन्म में ही मिल जाता है और कुछ अगले जन्म में भी ….

वो परम आत्मा जब हमारे अच्छे कर्मों का फल हमें देता है तो हम लोग उसका रस लेते हैं, आनंद उठाते हैं। उस समय उस परम आत्मा को कम ही लोग याद रखते हैं।

लेकिन जब हमारे बुरे कर्मों (जो की अधिक होते हैं) का फल वो परम आत्मा हमें देता है तो हमें उसकी याद आती है। हम महाराज जी से भी गुहार लगाते हैं। ऐसी परिस्थियों में भविष्य की चिंता करने से हमारे हालात नहीं बदलने वाले इसलिसे चिंता नहीं करनी है या चिंता ना करने की कोशिश में ही हमारा कल्याण है।

बुरे समय में महाराज जी अपने सच्चे भक्तों का विशेष ध्यान रखते हैं। उनकी दृष्टि में सभी भक्त है - हर समय। फिर जैसे जिसके भाव होते हैं उनके लिए -वैसे ही वो महाराज जी को वे अपने समीप पाते हैं।

हमें अपनी आस्था महाराज जी के लिए ऐसी बनानी है जिससे हमारा ये विश्वास दृढ़ हो सके की महाराज जी सदैव हमारे साथ हैं - उन पलों में जब हम उनके उपदेश अनुसार अच्छे कर्म या बुरे कर्म कर रहे होते हैं और तब भी जब वो परम आत्मा इन कर्मों का फल हमें दे रहा होता है। अपने भावों में सच्चाई लाने लिए, विश्वास दृढ़ करने के लिए हमें महाराज जी के उपदेशों पर चलने की ईमानदार कोशिश करते रहना है।

इस सन्दर्भ में कबीर दास जी का ये दोहा दोहराते रहना है:

गुरु को सर पर राखिये चलिये आज्ञा माहि।

कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहीं।।

वो परम आत्मा और महाराज जी भी हमारा प्रारब्ध अथवा हमारे बुरे कर्मों के फल को अब बदलते तो नहीं हैं लेकिन वो उनका सामना करने की परिस्थितियां हमारे लिए अवश्य पैदा कर देते है …कुछ ना कुछ लीला करके। ये परिस्थितियां हमारे पसंद की हों या ना हों (क्योंकि असुविधा तो कोई नहीं झेलना चाहता) लेकिन फिर भी, बुरे समय से निकलने के प्रयत्न निरंतर करते रहने के साथ -साथ, हमें अपने आप को ये याद दिलाते रहना होगा, विश्वास दिलाना होगा की:

हम महाराज जी के संरक्षण में है इसलिए अंततः हमारा बुरा तो हो ही नहीं सकता !!

और कठिन समय का सामना करने के लिए ये परिस्थितियां जो उस परम आत्मा ने, महाराज जी के आशीर्वाद से, हमारे लिए बनाई है - यही सबसे उत्तम व्यवस्था है हमारे लिए !!

महाराज जी और वो परम आत्मा सही समय आने पर हमारी नैया पार लगा ही देंगे।

तभी कहते हैं कि 'जा बिधि राखैं राम - ता विधि रहिये' के सिद्धांत पर चलने में ही हमारा कल्याण है।

इस सन्दर्भ में हमें अपने आप को याद दिलाते रहना है हमारा वर्तमान जैसा भी है- है हमारे ही पूर्व कर्मों का फल। और भविष्य में दुःख और परेशानियां कम हों इसके लिए, जैसा हमने पहले भी चर्चा की है, हमारे लिए अच्छा होगा यदि हम करने के पहले सोचने का प्रयास करें कि -जो हम कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं ??

यदि हम कोई ऐसा कर्म करने जा रहे हैं जो कि महाराज जी के उपदेशों के विपरीत है तो हमारी अंतरात्मा हमें इस बात के लिए एक बार सचेत अवश्य करेगी। हमारा कल्याण इसी में है की हम ऐसे कर्म ना करें। ऐसा प्रयास/ अभ्यास करने से हमारे जीवन में बुरा समय कम से कम आएगा। बाकी हमारे विवेक पर है।

महाराज जी कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।

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