यह होती है प्रेमी की दशा



अक्रूर जी भक्त हैं और भक्त सदा कृष्णकृपाकांक्षी ही होता है। अक्रूर जी को कृष्ण कृपा प्राप्त थी। 

ज्ञानी हो जाना अच्छी बात है, आलोचक होना भी बुरा नहीं, समाज सुधारक हो जाना यह भी ठीक ही है। अच्छे कार्यों को करना भी श्रेष्ठता का परिचायक है। परंतु प्रेमी हृदय होना यह तो कृष्ण कृपा साध्य ही है।

अक्रूर जी तो कृष्ण प्रेम में इतने तन्मय हो गए थे कि मैं रथ चला रहा हूँ। वे यह भी भूल गए कि मैं कौन हूँ, कहां जा रहा हूँ, किसने भेजा है? उन्हें तो बस दसों दिशाओं में कृष्ण का ही अनुभव हो रहा था और कुछ सुध ही नहीं रही। यह होती है प्रेमी की दशा।

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