भाला चलाने का काम सभी नहीं कर सकते, इसलिए जो करते हैं उनका भी सम्मान होना चाहिए


आखिर सोशल मीडिया के लड़ाकों ने फिल्मी मूर्खों को बता दिया कि तांडव योद्धा करते हैं नचनिये नहीं। कुछ रुपयों के बदले अपनी कलम बेंच चुके लेखकों, पैसे के लिए नग्न हो कर नाचने वाली हीरोइनों और पतित हो चुके देहधन्धी अभिनेताओं की औकात नहीं होती कि वे धार्मिक प्रतीकों की आलोचना करें। उंगली पकड़ते पकड़ते कलाई पकड़ने की कोशिश कर रहे अभद्र टुच्चों को उन्ही की भाषा में उत्तर देना आवश्यक होता है, और यह देखना सुखद है कि अब लोग उत्तर देना सीख रहे हैं।
 
 
कल पहली बार किसी को दी जा रही गालियां अच्छी लग रही थीं। पिछले तीन-चार दिनों में लड़कों ने जिस तरह तांडव फ़िल्म के कलाकारों, निर्देशक, लेखक को घसीट घसीट कर माफी मांगने पर विवश किया वह शानदार है। यह देखना भी सुखद है कि अब मेन स्ट्रीम मीडिया को भी सोशल मीडिया की पिच पर आकर खेलना ही पड़ रहा है और सुखद है यह देखना भी कि उत्तर प्रदेश की सरकार इन असभ्य विदूषकों को दण्ड देने के लिए तत्परता से आगे आ रही है। युग परिवर्तन इसी को कहते हैं शायद...अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ न राष्ट्रद्रोह की स्वतंत्रता है, न धर्मद्रोह की...
 
अधिकारों के दुरुपयोग का अधिकार तो किसी को भी नहीं मिलना चाहिए। सुअरों को विष्ठा चाटने का अधिकार तो होता है, किसी के आंगन में घुस कर विष्ठा उगलने का अधिकार नहीं होता। ऐसा करने पर उनका थुथुन कुचल देना ही न्याय होता है। सुखद है यह देखना कि सहिष्णुता के नाम पर कुछ भी सहन करने वाले लोग अब सुअरों का मुंह तोड़ना सीख रहे हैं। कुछ लड़ाइयां सज्जनता से नहीं जीती जा सकतीं। शक्ति के मद में पागल भैंसा प्रेम की भाषा नहीं समझता, वह केवल भाले की नोक समझता है।
 
भाला चलाने का काम हम सभी नहीं कर सकते, इसलिए जो करते हैं उनका भी सम्मान होना चाहिए। धन्यवाद के पात्र हैं वे सभी लड़के, जिन्होंने वेद और उपनिषदों का अध्ययन भले न किया हो पर धर्म की ओर उठने वाली हर षड्यन्त्रकारी उंगली को तोड़ देने के लिए लड़ पड़ते हैं। जो लड़ पड़ते हैं किसी भी अपरिचित भाई की प्रतिष्ठा के लिए, जो जूझ जाते हैं किसी अनदेखी बहन के सम्मान के लिए...यह लड़ाई उनकी व्यक्तिगत नहीं है। इसके लिए उन्हें न कोई मिशनरी पैसा देता है, न कनाडा न कोई और! 
 
वे अपना समय, अपना धन और अपना साहस लगाते हैं और उन लोगों के लिए लड़ते हैं जिनमे से अधिकांश की दृष्टि में वे बुरे हैं, अभद्र हैं। अति सज्जनता के ढोंग में फंस कर उनका अपमान करने वाले लोग यह नहीं समझते कि पूज्य तुलसी बाबा ने असज्जनों की बन्दना भी क्यों की थी। खैर जिन्दाबाद रहो लंठो! समय तुम्हारे निस्वार्थ योगदान को भी स्मरण रखेगा।


सर्वेश तिवारी श्रीमुख

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