संविधान : अभिव्यक्ति और पत्रकारिता

 


जैसा कि एम्०वी० पायली ने कहा है कि मूल अधिकार एक ही समय पर शासकीय शक्ति से व्यक्ति स्वातन्त्र्य की रक्षा करते है और शासकीय शक्ति द्वारा व्यक्ति स्वातन्त्र्य को सीमित करते हैं। इस प्रकार मूल अधिकार व्यक्ति और राज्य के बीच सामंजस्य स्थापित कर राष्ट्रीय एकता और शक्ति में वृद्धि करते है। संवैधानिक परिधि के दृष्टिगत आचरण और व्यवहार की सीमा जानने के पहले यह जानना आवश्यक है कि इस संदर्भ में हमारा संविधान क्या कहता है! 

मीडिया को अलग से अधिकार नही दिए गए है बल्कि नागरिको को संविधान के भाग ३ में निहित मूल अधिकार से प्राप्त अधिकार ही उनमे शक्ति निहित करते हैं। यह शक्ति १९(१) व १९(२) उपबन्धों व समसामयिक न्यायिक निर्णयों के अधीन है।

विभिन्न न्यायिक निर्णयों द्वारा इसी १९(१)(क)  वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधीन जिन्हें मूल अधिकार माना गया है उनके उदाहरण है-

१)प्रेस की स्वतंत्रता (साकल पेपर्स लि. बनाम भारत संघ-१९६२)

२)राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार(भारत संघ बनाम नवीन जिंदल-२००४)

३)वाणिज्यिक भाषण(विज्ञापन) की स्वतंत्रता

४)जानने की स्वतंत्रता

५)मतदाता को सूचना का अधिकार-अर्थात उम्मीदवारों के आपराधिक रिकार्ड, सम्पति इत्यादि।

६)चुप रहने का अधिकार(राष्ट्रगान का मामला-इमानुअल बनाम केरल राज्य-१९८६)

७)सूचनाओं और समाचारो को (साक्षात्कार आदि से) जानने का अधिकार-प्रेस की स्वतंत्रता आती है-प्रभुदत्त बनाम भारत संघ-१९८२)

८)विदेश जाने का अधिकार(मेनका गांधी बनाम भारत संघ-१९७८)

९)इलेक्ट्रॉनिक मीडिया(टेलीविजन, रेडियो आदि) द्वारा किसी घटना का आँखों देखा हॉक प्रसारित करने का अधिकार

१०)प्रदर्शन या धरना- किन्तु तभी तक वह हिंसात्मक अथवा उच्श्रंखल न हो।

११)पूर्व अवरोध(प्री सेंसरशिप)

१२)हड़ताल एवं बन्द का अधिकार- अनुच्छेद १९(१)(क) के अंतर्गत कोई मूल अधिकार नहीं है। अतः बन्द का आह्वाहन एवं आयोजन असंवैधानिक है।

साथ ही १९(१)(क) सदैव १९(२) में साथ पठनीय है, जिसके बाबत लोगो को प्रायः जानकारी नही होती। 

१९(२) में उन आधारों का उल्लेख किया गया है, जिन पर राज्य वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता युक्तियुक्त निर्बंधन लगा सकता है, जो निम्नानुसार है-

१)भारत की प्रभुता एवं अखण्डता

२)राज्य की सुरक्षा

३)विदेशी राज्यो के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध

४)लोकव्यवस्था

५)शिष्टाचार एवं सदाचार के हित में

६)न्यायालय का अवमानना

७)मानहानि

८)अपराध उद्दीपन के सम्बन्ध में

 यह जानना भी नितांत आवश्यक हो जाता है कि आज संवैधानिक परिधि के भीतर रह कर नैतिक रूप से स्वस्थ होकर क्या करें और क्या न करें!

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। पत्रकारिता एक जिम्मेदारी भरा काम है, अत: हर पत्रकार को खबर, समाज और देश को लेकर चौकन्ना रहना चाहिए। एक छोटी सी गलती पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान पर भारी पड़ सकती है। पत्रकारिता की भी एक लक्ष्मण रेखा होती है जिसे हम पत्रकारिता की आचार संहिता भी कह सकते हैं। उदाहरण के लिए टीवी पर या अखबार में रेप पीड़िता का नाम, फोटो या उससे संबंधी किसी भी जानकारी को प्रकाशित या प्रसारित करना अपराध की श्रेणी में आता है, इस मामले में पत्रकारिता संस्थान और पत्रकार पर कार्रवाई भी हो चुकी है। अत: हर पत्रकार को अपनी सीमा का ध्यान रखना चाहिए-

१.  पत्रकार को किसी भी विचारधारा से प्रभावित होकर खबर का प्रकाशनया प्रसारण नहीं करना चाहिए। पत्रकार को हर समय न्यायनिष्ट और निष्पक्ष रहना चाहिए।

२. हमारे देश में जाति और धर्म के नाम पर हमेशा विवाद होता रहता है, कई बार तो दंगा की भी नौबत आ जाती है। अत: एक पत्रकारको खबर का प्रकाशन और प्रसारण करते समय समय विशेष सावधानी और निष्पक्षता बरती जाये। किसी भी प्रकार से जाति या धर्म को लेकर टिका-टिप्पणी नहीं करना चाहिए।

३. खबर की मूल आत्मा के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। खबर जो है ठीक वैसे ही पेश करना चाहिए। समाचारों में तथ्यों को तोडा मरोड़ा न जाये न कोई सूचना छिपायी जाये।

४. व्यावसायिक गोपनीयता का निष्ठा से अनुपालन का ध्यान रखना चाहिए।

५. पत्रकारिता एक मिशन है अत: इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत हित साधने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। प्राय: कई एेसे पत्रकार और पत्रकारिता संस्थान पत्रकारिता को ढाल बनाकर उसके आड़ में गलत धंधा करते हैं। खुद को पत्रकार बताकर नियम-कानून की अवहेलना करना या मनमानी करना भी अपराध की श्रेणी में आता है।

६. पत्रकार अपने पद और पहुंच का उपयोग गैर पत्रकारीय कार्यों के लिए न करें। उदाहरण के लिए- प्राय: ऐसा देखा जाता है कि कई बार ट्रैफिक नियम का पालन ना करने पर जब पत्रकार को दंडित किया जाता है तो वह खुद को प्रेस से बताकर अपने पद का दुरुपयोग करता है।

७. पत्रकारिता पर कई बार पेड न्यूज जैसे दाग लग चुके हैं। अत: पत्रकारिता की मर्यादा का ध्यान रखते हुए एक पत्रकार को रिश्वत लेकर समाचार छापना या न छापना अवांछनीय, अमर्यादित और अनैतिक है।

८. हर व्यक्ति की इज्जत उसकी निजी संपत्ति होती है। जिसपर सिर्फ उसी व्यक्ति का अधिकार होता है किसी के व्यक्तिगत जीवन के बारे में अफवाह फैलाने के लिए पत्रकारिता का उपयोग नहीं किया जाये। यह पत्रकारिता की मर्यादा के खिलाफ है। अगर ऐसा समाचार छापने के लिए जनदबाव हो तो भी पत्रकार पर्याप्त संतुलित रहे।

कुछ साल पहले राष्ट्रपति एपीजे अव्दुल कलाम के हस्ताक्षर से एडीटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने एक पत्रकार व्यवहार संहिता भी जारी की थी। इसमें भी काफी मनन के बाद कई बिंदुओं को शामिल किया गया था। कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार हैं-

१. पर्याप्त समय सीमा के तहत पीड़ित पक्ष को अपना जवाब देने या खंडन करने का मौका दें।

२. किसी व्यक्ति के निजी मामले को अनावश्यक प्रचार देने से बचें।

३. किसी खबर में लोगों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए उसमें अतिश्योक्ती से बचें।

४. निजी दुख वाले दृश्यों से संबंधित खबरों को मानवीय हित के नाम पर आंख मूंद कर न परोसा जाये।मानवाधिकार और निजी भावनाओं की गोपनीयता का भी उतना ही महत्व है।

५. धार्मिक विवादों पर लिखते समय सभी संप्रदायों और समुदायों को समान आदर दिया जाना चाहिए।

६. अपराध मामलो में विशेषकर सेक्स और बच्चों से संबंधित मामले में यह देखना जरूरी है कि कहीं रिपोर्ट ही अपने आप में सजा न बन जाये और किसी जीवन को अनावश्यक बर्बाद न कर दे।

७. चोरी छिपे सुनकर (और फोटो लेकर) किसी यंत्र का सहारा लेकर ,किसी के निजी टेलीफोन पर बातचीत को पकड़ कर ,अपनी पहचान छिपा कर या चालबाजी से सूचनाएं प्राप्त नहीं की जायें। सिर्फ जनहित के मामले में ही जब ऐसा करना उचित है और सूचना प्राप्त करने का कोई और विकल्प न बचा हो तो ऐसा किया जाये।

कुछ ऐसी बातें हैं जिससे पत्रकार को फिल्ड में या डेस्क पर काम करते वक्त हमेशा दो-चार होना पड़ता है, इसलिए उपरोक्त सभी बातों को ध्यान में रखने के साथ-साथ एक पत्रकार को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि- 

१. खबर, विजुअल या ग्राफिक्स में रेप पीड़िता का नाम, फोटो या किसी तरह का कोई पहचान ना हो। फोटो को ब्लर करवाकर इस्तेमाल किया जा सकता है। 

२. न्यायालय को इस देश में सर्वश्रेष्ठ माना गया है इसलिए न्यायालय की अवहेलना नहीं होनी चाहिए। 


३. देश हित एक पत्रकार की प्राथमिकता होती है अत: पत्रकार को देश के रक्षा और विदेश नीति के मामले में कवरेज करते वक्त देश की मर्यादा का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। 

४. न्यायालय जब तक किसी का अपराध ना सिद्ध कर दे उसे अपराधी नहीं कहना चाहिए इसलिए खबर में उसके लिए आरोपी शब्द का इस्तेमाल करें।

५. अगर कोई नाबालिग अपराध करता है तो उस आरोपी का विजुअल ब्लर करके ही चलाना चाहिए।

यदि देखा जाय नैतिकता को अपना समवैधानिक दृष्टि से बाध्यकारी नही है, कर्तव्य अवश्य है।

मेरी राय में मीडिया को कुछ अधिक स्वस्तंत्रता देनी चाहिए साथ ही युक्तियुक्त बाध्यता भी होनी ही चाहिए यह मैं शुरू से कहता आया हूँ बल्कि आवश्यक है कि इनकी आचरण संहिता का निर्माण भी किया जाना चाहिए।

अतैव स्पष्ट है कि भारत के संविधान में भाग-३ के अनुच्छेद १९(१) के तहत प्राप्त स्वतन्त्रता ही मीडिया को प्राप्त स्वतंत्रताये है अर्थात मीडिया को अलग से कोई अधिकार व स्वतन्त्रता नही दी गयी है।


(निखिलेश मिश्रा)

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