मनुष्य की जीवन-यात्रा माँ की कोख से शुरू होकर अर्थी तक की होती है
हमने घूमकर देखा। १८ की उमर में ४ बरस घूमें है। तुम सब मौत, भगवान को भूले हो। समझते हो समय, स्वांस, शरीर हमारा है। परिवार, धन, मकान, खेती हमारी है। खूब खाते-पीते हो। कोई तारीफ करे तो मस्त हो जाते हो। बुराई करे तो नाखुस होते हो। कसूर तुम्हारा है।
मरते समय भगवान का नाम कान में पर जाता है, तो महापापी भी तर जाता है। यह कर्म भूमि है, अपने-अपने कर्मानुसार जीव मरते पैदा होते हैं, दुख-सुख भोगते हैं। तुम जन्म के साथी हो कर्म के नही। लगता है महाराज जी भक्तों को ये उपदेश देते समय, हममें से अधिकतर लोगों को, हमारे ही जीवन का जैसे, दर्पण दिखा रहे हैं। हमारे जीवन की यात्रा माँ की कोख से अर्थी तक की होती है। जिसमें प्रायः सुख का तो एक ही भाग होता तो परन्तु दुःख के तीन भाग होते हैं -वो भी अलग -अलग रूपों में, पर ऐसा क्यों है ?? और क्या इसको बदल नहीं सकते, थोड़ा ही सही … चलिए समझने का प्रयत्न करते हैं।
हममें से बहुत से लोग अच्छा-अच्छा खाने-पीने को अपने जीवन में बहुत अधिक प्राथमिकता देते हैं और जब किसी कारणवश अच्छा खाना ना मिले या ना खा सकें तो बहुत दुखी हो जाते हैं, कभी-कभी इस कारण अपनों को दुःख भी देते हैं। किसी पराए ने तारीफ कर दी, फिर चाहे वो झूठी ही क्यों ना हो, तो खुश हो गए और किसी अपने -पराए ने आलोचना/बुराई कर दी तो नाखुश हो गए । कभी- कभी- इसी नाखुशी में अपने -परायों को भला- बुरा कहा, दुःख भी पहुँचाया, फिर चाहे उनकी आलोचना में कहीं ना कहीं हमारा हित ही क्यों न छुपा हो।
गनीमत है तब फेसबुक नहीं था क्योंकि इसकी लाइक्स बटोरनी वाली कृत्रम या नकली दुनिया में, थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन सब कुछ अच्छा होता है। हममें से कुछ लोग छल-कपट करके पैसे कमाते हैं, कभी कभी दूसरों का हक़ छीनकर भी, जिससे जाने- अनजाने में किसी का जीवन तहस- एहस होना भी संभव है। ऐसे में उन्हें दुःख पहुंचना तो निश्चित है। फिर हम अपने या अपनों के स्वार्थ के लिए दूसरों को दुःख पहुंचाते हैं, -उनकी आँखों में आंसुओं ले आते हैं ….कभी -कभी तब भी जब हमारा विवेक हमें ये कह रहा होता है कि हम या हमारे अपने -सही नहीं हैं !!
ऐसा कुछ लोग अपने प्रियजनों के साथ भी करते हैं, कभी -कभी तो बहुत छोटी -छोटी बातो पर भी,जिसकी बिलकुल ही आवश्यकता नहीं थी....फिर जब वे हमारे जीवन में नहीं होते हैं या जब उनकी मृत्यु हो जाती है तो उनके ही लिए हम आंसू बहाते है। पछतावा भी होता …. कभी -कभी बहुत अधिक…. लेकिन अब कुछ कर नहीं सकते। बहुत दुखद स्थिति हो जाती है और ऐसे, कितने ही ढंगो से जब हम अपने -परायों को दुःख देते हैं तो महाराज जी कहते हैं की प्रायः हम मौत और भगवान को भूल जाते हैं।
ऐसे बुरे कर्म करते समय ये याद ही नहीं रहता की वो सर्वज्ञ परमात्मा अपनी असंख्य आँखों से सब देख रहा, सबको देख रहा है और वो हमारे इन बुरे कर्मों का फल हमें, अपनी योजना के अंतर्गत, अपने ही द्वारा तय किये हुए स्वरुप में आगे -पीछे देगा ही देगा, अधिकांश वर्तमान जन्म में ही !! तब हम दुखी होते हैं। ऐसे ही हममें से कुछ लोगों की जीवन यात्रा के बड़ा भाग इसी तरह के दुखों में बीत जातां है, जैसे ऊपर कहा गया है और यदि हमने जीवन में अच्छे कर्म किये है, जैसे महाराज जी ने अपने उपदेशों में भी वर्णन किया है तो ईश्वर उन कर्मों के अनुसार हमारे जीवन में अच्छा समय, सुख भी देता है।
अब ये थोड़ा या अधिक होगा ये हमने कितने अच्छे कर्म किये हैं उस पर निर्भर करता है। फिर हमारी मृत्यु तो निश्चित है!! और उस समय सब सगे -सम्बन्धी, मित्र, घर -परिवार, पैसा -मकान - गाड़ी इत्यादि जिन पर कभी हमें अहंकार होता था - ये सब यहीं छूट जाएंगे। तब परमात्मा का दिया हुए ये शरीर, जिसको कुछ लोग चमकाने में बहुत यत्न करते ही रहते हैं (स्वस्थ रखने की बात नहीं हो रही है), वो मिटटी में मिल जाएगा क्योंकि ये बना ही मिटटी से है।
मृत्यु के पश्चात् हमारे साथ केवल और केवल, हमारे कर्म ही जाएंगे जिनका फल हमें वर्तमान जन्म में परमात्मा नहीं दे पाया है। उनके आधार पर ही परमात्मा नए जन्म में हमारी सांसे अर्थात हमारी आयु निर्धारित करेगा। और कर्मों के अनुसार ही भगवान् ये तय करते है हमारा नया जन्म कहाँ और कैसा होगा - धन- संपत्ति से संपन्न घर में या निर्धन के यहाँ, शरीर के पूरे अंगों के साथ या कभी अधूरे भी , स्वस्थ शरीर के साथ या कभी कुछ बीमारियों के साथ इत्यादि।
महाराज जी कहते हैं की वर्तमान जन्म के कर्मों के अनुसार ही परमात्मा अगले जन्म में हमारे लिए सुखद परिस्थितियां भी देता है, अच्छा समय देता है, तो जब हर जन्म में समय, सांस और शरीर सब कुछ परमात्मा का ही है तो हमारे अपने, तो केवल हमारे कर्म ही बचे। तो क्यों ना कर्म करने के पहले, हम एक क्षण ये विचार करने का प्रयत्न करें कि जो हम कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं ?? क्योंकि जैसे महाराज जी कहते हैं की परमात्मा हमारे कर्मों के अनुसार ही हमारे जीवन में सुख और दुःख का समय तय करता है।
महाराज जी सबका भला करें।