मेरी तरफ मत देखो



मनुष्य में जो भी विशेषता, विलक्षणता आती है, वह सब भगवान से ही आती है। अगर भगवान ने विशेषता, विलक्षणता न होती तो वह मनुष्य में कैसे आती ? जो चीज अंशी में नहीं है, वह अंश में कैसे आ सकती है ?

मनुष्य की भूल यही होती है कि वह उस विशेषता को अपनी विशेषता मान कर अभिमान कर बैठता है। जहां से वह विशेषता आयी है उस तरफ ख्याल ही नहीं करता। 

सृष्टि की प्रत्येक वस्तु, व्यक्ति आदि प्रतिक्षण नाश की ओर जा रहे हैं। अतः सृष्टि की प्रत्येक वस्तु मानो यह क्रियात्मक उपदेश दे रही है कि मेरी तरफ मत देखो। मैं तो रहूँगी नहीं। मेरे को बनाने वाले की तरफ देखो।

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