कर्म जड़ होने से स्वतंत्र फल नहीं दे सकते


इस जीव को जो भी कुछ मिलता है, वह प्रारब्ध के अनुसार मिलता है पर प्रारब्ध विधान के विधाता स्वयं भगवान हैं। कर्म जड़ होने से स्वतंत्र फल नहीं दे सकते, वे तो भगवान के विधान से ही फल देते हैं।
ठाकुर जी, मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं।

अगर कोई मनुष्य भगवान की आज्ञा के अनुसार, उन्ही की प्रसन्नता के लिए सब कार्य करता है, उसे भगवान दूसरों की अपेक्षा अधिक ही देते हैं। परंतु जो भगवान के समर्पित होकर सब कार्य करता है उस भक्त के भगवान भी भक्त बन जाते हैं। संसार मे कोई भी नौकर को अपना मालिक नहीं बनाता, परन्तु भगवान शरणागत भक्त को अपना मालिक बना लेते हैं। ऐसी उदारता केवल प्रभु में ही है।

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